आज़ादी के 76 साल: उपलब्धियां और चुनौतियाँ
« »17-Aug-2023 | सचिन समर
यह 15 अगस्त, देश की आजादी के 76 साल का गवाह बन रहा है। 76वें स्वतंत्रता दिवस की थीम 'राष्ट्र प्रथम, सदैव प्रथम' है, जिसके अनुसार राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए काम करना है। इसके साथ ही 76वें स्वतंत्रता दिवस, 2023 पर पहली बार "मेरी माटी, मेरा देश" आभियान चलाया जा रहा है।
आजादी के 76 साल के सफ़र में देश ने कई चुनौतियों का सामना किया है और विभिन्न क्षेत्रों में उत्तरोत्तर प्रगति भी की है। आर्थिक विकास, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नति, औद्योगिकीकरण, कृषि क्षेत्र में सुधार, शिक्षा और आधुनिकीकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। हालांकि, देश को अभी भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जैसे- गरीबी, बेरोजगारी, आपातकालीन परिस्थितियों का समुचित प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि। समस्याओं के बीच देश विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति हेतु निरंतर गतिमान है और इसके साथ ही वर्तमान में भारत वैश्विक मंच पर भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शौर्यपूर्ण कहानी और उसके बाद की 76 सालों की यात्रा ने देश की गरिमा और समृद्धि की कहानी को नया मुकाम दिया है। 15 अगस्त 1947 को प्राप्त स्वतंत्रता से एक नये युग की शुरुआत हुई और देश ने आत्मनिर्भरता की दिशा में पहला कदम बढ़ाया। आज से 76 साल पहले, भारतीय समाज ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है और उनसे पार जा कर प्रगति की। आर्थिक विकास, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, औद्योगिकीकरण, और ग्लोबल मंच पर भारत की महत्वपूर्ण भूमिका - ये सभी क्षेत्र देश की यात्रा में प्रगति के प्रतीक हैं।
देश को अभी भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। गरीबी, बेरोजगारी, जातिवाद, विकास के असमान वितरण, और पर्यावरण संरक्षण - ये सभी मुद्दे देश के सामने अब भी हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश ने इन समस्याओं का समाधान ढूंढने का सकारात्मक संकेत दिया है और सकारात्मक दिशा में प्रयासरत भी है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान, फ़िल्म और कला क्षेत्र में देश के महत्वपूर्ण योगदान से नवाचारित भारत का परिचय सम्पूर्ण विश्व को हो रहा है। इस 76 साल की यात्रा में, हमारे देश के लोगों ने महान संघर्षों, संकटों और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन हमने ये सब उन्नति, समृद्धि, और विकास की दिशा में अपने कदम मजबूती से बढ़ाये हैं। देश की यात्रा में आज भी कई मुद्दे हैं, लेकिन हमारा संकल्प मजबूत है और हम एक और बेहतर भविष्य की ओर बढ़ते रहेंगे।
चुनौतियां:
मुख्य तौर पर भारत के सामने तीन तरह की चुनौतियाँ थीं। पहली और तात्कालिक चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक ऐसे भारत को गढ़ने की थी जिसमें भारतीय समाज की सारी विविधताओं के लिए जगह हो। भारत अपने आकार और विविधता में किसी महादेश के बराबर था। यहां अलग-अलग बोली बोलने वाले लोग थे, उनकी संस्कृति अलग थी और वे अलग-अलग धर्मों के अनुयायी थे। उस वक्त आमतौर पर यही माना जा रहा था कि इतनी विविधताओं से भरा कोई देश ज्यादा दिनों तक एकजुट नहीं रह सकता। देश के विभाजन के साथ लोगों के मन में समाई यह आशंका एक तरह से सच साबित हुई थी। भारत के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े थे : क्या भारत एक रह पाएगा? क्या ऐसा करने के लिए भारत सिर्फ़ राष्ट्रीय एकता की बात पर सबसे ज्यादा जोर देगा और बाकी उद्देश्यों को तिलांजलि दे देगा? क्या ऐसे में हर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान को खारिज कर दिया जाएगा? उस वक्त का सबसे तीखा और चुभता हुआ एक सवाल यह भी था कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को कैसे हासिल किया जाए?
दूसरी चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी। हम सब भारतीय संविधान से अवगत हैं। आप जानते हैं कि संविधान में मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है और हर नागरिक को मतदान का अधिकार दिया गया है। भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्वमूलक लोकतंत्र को अपनाया। इन विशेषताओं से यह बात सुनिश्चित हो गई कि लोकतांत्रिक ढाँचे के भीतर राजनीतिक मुकाबले होंगे। लोकतंत्र को कायम करने के लिए लोकतांत्रिक संविधान जरूरी होता है लेकिन इतना भर ही काफ़ी नहीं होता। चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार बरताव चलन में आएँ।
तीसरी चुनौती थी, ऐसे विकास की जिससे समूचे समाज का भला होता हो न कि कुछ एक तबकों का। इस मोर्चे पर भी संविधान में यह बात साफ़ कर दी गई थी कि सबके साथ समानता का बरताव किया जाए और सामाजिक रूप से वंचित तबकों तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए। संविधान ने 'राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों’ के अंतर्गत लोक कल्याण के उन लक्ष्यों को भी स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीति को जरूर पूरा करना चाहिए। अब असली चुनौती आर्थिक विकास तथा गरीबी के खात्मे के लिए कारगर नीतियों को तैयार करने की थी।
आजाद हिंदुस्तान ने इन चुनौतियों के आगे क्या रुख अपनाया? संविधान में तय किए गए विभिन्न लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में कहाँ तक सफलता मिली?
विभाजन का समय:
आजादी के तुरंत बाद राष्ट्र निर्माण की चुनौती सबसे प्रमुख थी। भारत की आजादी के समय में सबसे बड़ी चुनौती विभाजन था। 1947 में पाकिस्तान के विभाजन से जुड़े विवाद ने देश को बड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन से एक तरफ भारत को एक नयी राष्ट्रीय अवधारणा का सामना करना पड़ा, जिसने संख्याबल की चुनौती पेश की। विभाजन के समय हिंदू-मुस्लिम दोस्ती और सहयोग की परंपरा टूट गई और देश के तथाकथित धरोहरों को अलग-अलग देशों में विभाजित करना पड़ा।
भाषा विवाद:
1950 में भाषा विवाद ने भारत को एक नए विभाजन की दिशा में बढ़ा दिया। भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों के बीच भाषा विवाद उत्पन्न हुआ, जो राज्यों की एकता को प्रभावित करता था। हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार करने पर विवाद था और इसे लेकर विशेषतः दक्षिण भारतीय राज्यों में विरोध हुआ। भाषा आंदोलन के पश्चात, संघीय संसद ने भाषा को राज्य भाषा के रूप में स्वीकार किया और भारतीय नागरिकों को अपनी राष्ट्रीय भाषा में संप्रेषित किया।
अर्थव्यवस्था: आजादी के बाद, भारत को वृहत आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। गरीबी, बेरोजगारी, और विपरीत विकास देश की मुख्य चुनौतियों में से थे। इसके बावजूद, भारत ने अपनी आर्थिक विकास और उत्थान में बड़ी सफलता प्राप्त की। पंचवर्षीय योजना (1951-1956) और पूर्वानुमान के माध्यम से भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास किया। इससे राष्ट्रीय आर्थिक स्तर ने विस्तार किया और देश ने आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाए।
उपलब्धियां:
संविधान निर्माण:
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जिससे भारतीय नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय के मूल्यों का बोध हुआ और एक स्वतंत्र देश की आकांक्षाओं को बल मिला। संविधान ने भारत को एक संप्रभुतासम्पन्न लोकतंत्र बनाया और राष्ट्रीय एकता को समर्थन प्रदान किया।
शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी:
स्वतंत्रता के बाद के 75 वर्षों में देश की जो विशिष्ट उपलब्धियां रही हैं, उनमें शिक्षा के विस्तार को सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। आज देश में 15 लाख से ज्यादा प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय हैं, जिनमें 30 करोड़ से ज्यादा बच्चे शिक्षा पाते हैं। 1 करोड़ से ज्यादा शिक्षक शिक्षण कार्य में संलग्न हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालयों की संख्या 1113 है, जिनमें कुल मिला कर 4.2 करोड़ युवा उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
वर्तमान भारत की तुलना यदि 1947 में भारत में शिक्षा की स्थिति से की जाए तो बहुत आश्चर्य होगा कि 1947 से पहले सिर्फ 16 प्रतिशत लोग ही साक्षर थे। देश में विश्वविद्यालयों की संख्या मात्र 20 और कॉलेजो की संख्या 591 मात्र थी। देश के शीर्षस्थ 5 प्रतिशत विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान, जिनमें 20 आईआईटी, 21 आईआईएम, 54 केंद्रीय विश्वविद्यालय, एनआईटी और एम्स भी शामिल हैं, जो दुनिया के अनेक नामचीन संस्थानों में अपना स्थान बना रहे हैं।
भारत ने विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भी अद्भुत उपलब्धियां हासिल की है। अंतरिक्ष अनुसंधान, चंद्रयान मिशन, मंगल यान और इंटरनेट तकनीक के क्षेत्र में भारत ने अपनी नई पहचान बनाई है। इसके अतिरिक्त आत्मनिर्भर भारत ने विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में उन्नति के चलते विश्व भर में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई है।
आधी आबादी की उपस्थिति-
आज भारतीय महिलाएं वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। व्यवसाय से लेकर इसरो के मिसाइल कार्यक्रम और सेना में ऐसे मोर्चों पर दबदबा कायम कर रही हैं जहां पर कभी पुरुषों का प्रभुत्व था। भारत की कुल जनसंख्या का 48% महिलाएं हैं। हमारा देश आज दुनिया में सबसे तेजी से उभरता हुआ देश है। इसमें देश की महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारतीय महिलाओं ने अपने कार्यों से देश-विदेश में अपनी विशेष पहचान बनाकर देश को गौरवान्वित किया है। सामाजिक सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में नारी सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा विभिन्न महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम भी संचालित किए जा रहे हैं। इनमें अखिल भारतीय कार्यक्रम, उज्ज्वला योजना, निर्भया फंड, मिशन शक्ति, स्वाधार गृह योजना, बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ, सखी-वन स्टॉप सेंटर आदि परियोजनाएं महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु संचालित हैं।
सिनेमा का सफ़र
पिछले 76 साल में हिंदुस्तानी सिनेमा ने लंबा सफर तय किया है। इस सफर की जहां ढ़ेर सारी सुनहरी यादें हैं, वहीं अपनी कई दुश्वारियां भी हैं। इनको समझे बगैर हम इस पूरी विकास यात्रा का विश्लेषण नहीं कर सकते। आजादी के बाद का सिनेमा उम्मीदों और उमंगों का सिनेमा है। अंग्रेजों की दो सौ साल की गुलामी से त्रस्त मुल्क ने आजादी के बाद जिस तरह अंगड़ाई ली, उसका अक्स इस सिनेमा में बहुत खूबसूरती से नजर आता है। अगर इन 75 सालों के सिनेमाई विकास क्रम को देखें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि इस दौर में तमाम फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों के जरिये इस आजादी को और बेहतर करने का संदेश दिया।
जब से ओटीटी प्लेटफार्म शुरू हुआ है तो फिल्में हमारे मोबाइल तक पहुंच गई हैं। फिल्में देखने के लिए मोबाइल पर कई सारे एप्स हैं। इन एप्स को डाउनलोड कर सदस्यता लेनी पड़ती है और इसके बाद आप इंटरनेट के माध्यम से किसी भी समय अपनी मनपसंद फिल्म, वेब सीरीज और टीवी सीरियल्स देख सकते हैं। अब वर्चुअल सेंट लगने लगे हैं।वीडियो इफेक्ट्स और वर्चुअल के जरिये आप एक ही सेट पर वर्चुअल स्क्रीन पर अपना सेट निर्माण कर सकते हैं और उसमें दुनिया की कोई भी लोकेशन चुनकर मुंबई में ही शूटिंग शुरू कर सकते हैं। इसके मुंबई में प्रयोग शुरू हो चुके हैं. 2047 तक तकनीकी स्तर पर सिनेमा के और आगे जाने की संभावना है।
गरीबी मुक्त बनने की ओर
आजादी के बाद देश के सामने भारत को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की चुनौती थी। इसके लिए तमाम सरकारों ने योजनाएं बनाई। इसी का परिणाम है कि आज भारत विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था वाला देश बनने की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की प्रकाशित रिपोर्ट अनुसार, भारत में बहुआयामी गरीबी से पीड़ित लोगों की संख्या में अभूतपूर्व कमी आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2005-06 में भारत में बहुआयामी गरीबी से पीड़ित लोगों की संख्या 64.5 करोड़ थी। जो 2019-21 के दौरान मात्र 23 करोड़ ही रह गई है, यानी पिछले 15 साल में 41.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के चंगुल से बाहर आए हैं।
यही नहीं, भारत का बहुआयामी गरीबी सूचकांक जो 2005-06 में 0.283 था, 2019-21 में मात्र 0.069 तक पहुंच गया है। इस बात के लिए यूएनडीपी ने भारत की खासी तारीफ की है । यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित गरीबी और मानव विकास संबंधी रिपोर्टों के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि यूएनडीपी ने भारत की प्रशंसा की हो।
भारत की आजादी के 76 साल के सफर में, देश ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया और विश्व में अपनी पहचान बनाई है। स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धाओं की बलिदानी राष्ट्रीय भावना ने देश को सामर्थ्य प्रदान किया है कि वह अपने समस्याओं का सामना कर सके और उन्हें समृद्धि में परिवर्तित कर सके। आजादी के इस उत्कृष्ट समय में प्राप्त हुई उपलब्धियां भारत की गरिमा और विविधता को दर्शाती हैं और विश्व में भारत की एक महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराती हैं।
सचिन समरसचिन समर ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाराणसी से 'हिंदी पत्रकारिता' में स्नातकोत्तर किया है। वर्तमान में भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली में 'विज्ञापन एवं जनसंपर्क' पाठ्यक्रम में अध्ययनरत है साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता एवं लेखन कर रहे हैं। |
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