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संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता

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  29-Aug-2023 | अजय प्रताप तिवारी



मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज का निर्माण संवाद से हुआ है। मानव सभ्यता का विस्तार एवं संस्कृति, कला और साहित्य के विकास में संवाद की मुख्य भूमिका रही है। भारत के प्राचीनतम पौराणिक ग्रंथों से संवाद के महत्त्व को समझा जा सकता है। ऋग्वेद के अंतिम सूक्त में कहा गया है कि " सभी मनुष्य परस्पर साथ-साथ चलें। परस्पर स्नेहपूर्ण संवाद करें। सबके अंतरमन साथ-साथ ज्ञान प्राप्त करें। संवाद अनिष्ट दूर करने का मंत्र है। संवाद का कोई विकल्प नहीं । संवाद का घनत्व अपनत्व है। संवादहीनता में तनाव हैं, संघर्ष, युद्ध भी है।" संवादहीनता संघर्ष को जन्म देती है।

मानव सभ्यता के इतिहास में संघर्ष एक अनिवार्य तत्व के रूप में विद्यमान रहा है। यह संघर्ष की चरम परिणीति ही थी जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व को दो विश्व युद्धों के रूप में भीषण त्रासदी का सामना करना पड़ा। अक्सर देखा गया है की संवाद और वार्ता के अभाव में संघर्ष की सामान्य स्थिति विकराल रूप धारण कर लेती हैं। भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न हो इसलिए वैश्विक स्तर पर संवाद और वार्ता कायम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों की स्थापना पर जोर दिया गया जिससे भविष्य में युद्ध की पुनरावृत्ति को रोका जा सके और मानव सभ्यता एवं संस्कृति को अतीत की गाथा बनाने से बचाया जा सके। विश्वशांति और मानव कल्याण को ध्यान रखते हुए 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ को स्थापित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के 75 वर्ष से अधिक हो गए हैं। आज यह संगठन अपने छः प्रमुख अंगों और दर्जनों से अधिक एजेंसियों के साथ वैश्विक स्तर पर सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय मुद्दों के समाधान, मानव अधिकारों, गरीबी उन्मूलन, विस्थापितों के पुनर्वास,बीमारियों से लड़ने और सांस्कृतिक धरोहरों के रखरखाव में संयुक्त राष्ट्र संघ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र संघ को इसके शांति कायम करने और विकास कार्यों के साथ लोकतंत्र व मानवाधिकार के समर्थक के रूप में जाना जाता है। यह देशों के बीच विवादों में मध्यस्थता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और लैंगिक विभेद संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एजेंडो में शामिल है। वैश्विक स्तर पर व्याप्त भूख की समस्या, विश्व में बढ़ती शरणार्थियों की संख्या को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने समय-समय पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव हितार्थ में महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद भी राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ कई मुद्दों पर अप्रासंगिक सिद्ध हो रहा है। इनमे आतंकवाद, संगठित अपराध, मानव तस्करी, साइबर अपराध, मानवतावादी आपदाएँ, समुद्री सीमा विवाद, अंतरिक्ष क्षेत्रों में उभरती चुनौतियाँ और जैविक हथियार प्रमुख हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ कई देशों की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगाने में भी विफल साबित हो रहा है। आतंकवाद के खात्मे को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ कोई ठोस कदम नहीं उठा सका। दुनिया में खून खराबा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जिनके कँधो पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है वो अपने निजी स्वार्थ साधने में लगे हुए हैं। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। रूस अपने विस्तारवादी नीतियों के चलते यूक्रेन से युद्ध कर रहा है। रूस और यूक्रेन के युद्ध में अब तक 14,000 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है जो लंबे समय से विस्तारवादी नीतियों के चलते दक्षिण एशिया, आसियान (ASEAN) से लेकर मध्य एशिया के भौगोलिक क्षेत्रों पर दावा कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ मध्य एशिया, अफ्रीका और एशिया में हो रहे नरसंहार को रोकने में नाकाम रहा।

कई कमियों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ ने द्वितीय विश्व युद्ध की तुलना में मानव समाज को सभ्य, विश्व को अधिक शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के बाद से दुनिया के राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन देखने को मिलता है। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की घटती भागीदारी और वैश्विक ताप ,कार्बन उत्सर्जन को कम करने, मानव आजीविका, आर्थिक समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए प्राकृतिक पूंजी पर निर्भरता बढ़ाने के लिए देशों का ध्यान आकर्षित करा रहा है संयुक्त राष्ट्र संघ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सूचना पट पर बहुत ही सुनहरे अक्षरों में लिखी पंक्तियाँ मिलेंगी। जो कुछ इस तरह से लिखा गया है- "संयुक्त राष्ट्र संघ पृथ्वी पर एक मात्र संस्था है, जहाँ दुनिया के सभी देश एक साथ इकट्ठा हो सकते हैं, और वैश्विक समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं, एक साझा समाधान ढूँढ सकते हैं, जो मानव जाति के हित में हो। "

संयुक्त राष्ट्र के समक्ष संरचनात्मक चुनौतियाँ:

संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के कार्य और दायित्व अस्पष्ट हैं। दायित्व का अस्पष्ट होना नीति निर्माण को प्रभावित करती है साथ ही अविश्वास की भावना को जन्म देती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की निर्भरता पूरी तरह से सदस्य देशों की फंडिंग पर है। जो देश जितना अधिक फंड करेगा उसका महत्त्व अधिक होगा। सदस्य देशों की फंड राशि निश्चित न होना संयुक्त राष्ट्र संघ की निष्पक्षता को बाधित करता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के वीटो शक्ति पर नियंत्रण न होना संयुक्त राष्ट्र संघ के संरचनात्मक कमजोरियों में से एक है। संख्या बल में अधिक होने के बाजूद संयुक्त राष्ट्र महासभा का महत्त्व कम होना संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचनात्मक कमजोरी है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की जरूरत :

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना को 75 वर्ष से अधिक हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में बदलाव और सुधार समय की मांग और जरूरत भी है। इसके समक्ष कुछ चुनौतियाँ कम हुई हैं, तो कुछ नई चुनौतियाँ उभर कर सामने आई हैं। इन चुनौतियों के निदान हेतु नियम कानून में बदलाव आवश्यक है। 193 सदस्य देशों की संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित किये जाने वाले प्रस्ताव बाध्यकारी प्रकृति के नहीं होते हैं, जो महासभा के लिए ये सबसे बड़ी कमजोरी है। सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण को प्रभावित करने वाली नीतियों या किसी देश विशेष के हित में लिए जाने वाले निर्णय का अंतिम फैसला संयुक्त राष्ट्र महासभा के वोटिंग के आधार पर तय किया जाना चाहिए। महासभा के फैसले को अंतिम माना जाना चाहिए। अक्सर ऐसे देखा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के सदस्य अपने निजी स्वार्थ के चलते वीटो शक्ति का उपयोग करते हैं जिसके चलते संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य विफल हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी अंगों की समीक्षा हेतु एक नया संघ बनाना चाहिए। सुरक्षा परिषद् का विस्तार होना चाहिए।

निष्कर्ष :

मानवता की सेवा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अलग पहचान है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की विभीषिका से बचाए रखना संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख उपलब्धियाँ रही है। पं. जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र के सम्बन्ध में कहा था- "हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक बार उत्पन्न होने वाले संकटों को युद्ध में परिणित होने से बचाया है।" संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्य राजनीतिक समस्याओं और विश्व में शांति स्थापित करना ही नहीं है। यह मानव जीवन के सभी सभी क्षेत्रों में अवसर भी उपलब्ध करा रहा है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों पर काम कर रहा है जिसका लक्ष्य 2030 निर्धारित है। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ के घटते प्रभाव की वजह से दुनिया ने कई विफलताएँ देखी हैं। लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र संघ के संरचनात्मक सुधार की मांग हो रही है। समय के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र को अपनी पुरानी नीतियों में बदलाव और सुरक्षा परिषद् का विस्तार करना चाहिए।



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