संवाद है तो सबकुछ है
« »13-Feb-2024 | संजय श्रीवास्तव
ब्रिटिश वैज्ञानिक और प्रकृतिवादी चाल्र्स ने प्रकृति के साथ तमाम तरह के प्रयोग किये। एक बार वह चीटिंयों में संवाद की प्रक्रिया को देखने के लिए प्रयोग कर रहे थे। उनके प्रयोग करने के तौर-तरीके भी निराले थे। उन्होंने थोड़ी दूरी पर बने चीटिंयों के दो ठिकानों को खोजा। दोनों के बीच टेलीफोन का तार खींचा। इसे टेलीफोन के चोगे से जोड़ दिया। यानि आप एक ओर से बोल कर दूसरी ओर उसकी आवाज साफ-साफ सुन सकते थे। फिर वो चीटियों के एक ठिकाने पर हलचल पैदा करके देखते थे जो आवाज दूसरी ओर जा रही है, उस पर वहां की चीटियों की प्रतिक्रिया क्या है। ये प्रयोग उन्होंने बार बार किये।
दूसरे ठिकाने पर जाकर वो बार-बार निराश होते थे क्योंकि वहां प्रतिक्रिया दिखती ही नहीं थी। लेकिन डार्विन लगे रहे और पता लगा ही लिया कि उनमें संवाद आखिर होता कैसे है। चीटियां आवाज सुन नहीं पातीं। वे अपने पृष्ठभाग में लगे शरीर के एक खास हिस्से के कंपन या खुद छोड़ी वाली गंध के जरिए संवाद करती हैं। लेकिन संवाद करती जरूर हैं। उनके बीच इसका खास महत्व होता है। ये तो खैर चींटी की बात है-पूरी दुनिया ही संवाद करती है-भले हम समझ पाएं या नहीं।
मेढ़क टर्रटर्राहट के जरिए अल्ट्रा साउंड निकालते हैं और संवाद करते हैं। चमगादड़ भी अल्ट्रासाउंड के जरिए अपनी प्रजाति के सदस्यों से बातचीत करते हैं। प्रकृति भी आपस में बातें करती है। पेड़-पौधों का आपस में हौले-हौले हिलना उनमें एक संवाद स्थापित करता है। हालांकि अब तो साइंस के नए शोध मानते हैं कि पेड़-पौधे भी आपस में बात करते हैं।
वैसे विज्ञान ये मानता है कि वनस्पतियां खास किस्म के रसायन छोड़कर आपस में संवाद करती हैं। और तो और बीमारियों के जनक माने जाने वाले बैक्टीरिया में भी केमिकल लोचे के जरिए संवाद हो जाता है। यानि सारी दुनिया ही संवाद करती है। तरीके अलग-अलग होते हैं। कभी मालूम चलते हैं, कभी नहीं। एक अर्से तक हमें अपने पुराणों में प्रकृति के हर तत्व के बीच संवाद की बातें अटपटी लगती थीं। अब तो इनकी वैज्ञानिक प्रमाणिकता सामने आ रही हैं। सोचिये भला अगर इस दुनिया में संवाद नहीं होता तो क्या होता। जीवन कैसे चलता। दुनिया बेरंग सी होती। मनोरंजन नहीं होता। जीवन में रस नहीं होता। पता नहीं क्या-क्या नहीं होता।
घंटों कान से मोबाइल फोन चिपकाये रहने वाले क्या करते। न बॉलीवुड होता, न हॉलीवुड। शुक्र मानिये और धन्यवाद दीजिये हमारे उन पूर्वजों को, जिन्होंने पाषाण काल से गुजरते हुए संवाद का महत्व समझ लिया था। तब जुबान मूक थी। संकेतों, हावभाव, आंखों के जरिए संवाद होता था। जरूरत बोली की थी, जिसे बोला और समझा जा सके। कोई दो लाख साल पहले जब बोली ईजाद हुई, उसके बाद तो मानव की तरक्की को पंख लग गये। सभ्यता तेजी से कुलांचे भरने लगी। समझबूझ की प्रक्रिया बेहतर हुई। तालमेल बढ़ा। बेहतर जीवन की कोशिशें शुरू हुईं। मनुष्य का जीवन बदला। इसलिए बदला क्योंकि संवाद का असरदार जरिया जो मिल चुका था।
आगे बढ़ती जीवन यात्रा में जब मनुष्य को जब भाषाएं मिलीं तो सभ्यता की नई यात्रा शुरू हुई। यानि संवाद की नई शैली ने सभ्यता को नये पंख दिये। और फिर तो संवाद के तमाम साधन और बेहतर हो चले गये। और आज तो इसकी क्रांति ही हो चली है। संवाद के आमतौर पर तीन तरीके माने जाते हैं - लिखित, बोलकर और चित्रों (सांकेतिक) के सहारे। वैसे तो ये भी कहा जाता है कि हमारे आध्यात्म की दुनिया से जुड़े सिद्ध पुरुष टैलीपैथी से संवाद कर लेते थे।
लिखित ढंग से हम सबसे कम संवाद करते हैं-महज 07 फीसदी। बोलकर 38 फीसदी कम्युनिकेशन जगत चलता है-भले ही आप मोबाइल पर कितनी ही बातें कर रहे हों और आपको लगता हो कि दुनियाभर के लोग कितना ज्यादा बोलते हैं। सबसे ज्यादा संवाद होता है जो आप देखते हैं यानि शरीर के हाव-भाव और आंखों से दिखाई पडने वाली चीजों के जरिए - ये 55 प्रतिशत होता है। वैसे ये सही है कि वो दुनिया, जिसे 14वीं शताब्दी तक जानने की ललक बनी थी, वो और करीब आई है। संवाद के बेहतर तौर तरीकों के माध्यम से ही शासन बदले, साम्राज्य बदले। वो साम्राज्य ज्यादा फले-फूले जहां संवाद की बेहतर व्यवस्थाएं थीं। हमेशा से माना जाता रहा है कि संवाद जितना बेहतर होगा, जीवन उतना ही आसान होगा और प्रशासन उतना ही असरदार। संवाद की बेचैनी ने दुनिया को बदल दिया। क्रांति हो गई। कंप्युटर, मोबाइल, इंटरनेट, टीवी जैसे साधनों ने दुनिया को वाकई छोटा कर दिया।
अब संवाद के व्यवहारिक पक्ष की ओर चलते हैं। आप अक्सर देखते होंगे कुछ लोग संवाद में खास सिद्धहस्त होते हैं। हर किसी को प्रभावित कर लेते हैं। एक के बाद एक सफलता के तमाम दरवाजे उनके लिए खुल जाते हैं। दरअसल संवाद एक तरह की मार्केटिंग भी है, जिसमें प्रवीण होना सबसे बड़ी शर्त है। ये एक हथियार है, जिसके जरिए आप दूसरों को असरदार तरीके से ये समझा पाते हैं कि आप क्या कर रहे हैं या क्या कर सकते हैं। आपकी योग्यता और क्षमता की परख का पहला दरवाजा शायद संवाद ही होता है। यही आपको आम और खास बनाता है। रास्ते तैयार करता है। सीढ़ियां मुहैया कराता है।
दुनिया में आमतौर पर मनुष्य ज्यादातर संवाद मौखिक या लिखित रूप में करते हैं और भाषाहीनता की स्थिति में संकेतों और हावभाव से करते हैं लेकिन मनुष्यों से परे, पक्षियों और जानवरों की दुनिया में भी संवाद होते हैं और ये अक्सर उनकी आवाज के उतार-चढ़ाव, तीव्रता या संकेतों में ही होते हैं। हर जानवर अपनी आवाज के जरिए ही हमें कई बार ये बता देता है कि वो क्या चाहता है या उसे क्या दिक्कत है।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर विंस्टन चर्चिल तक, और वो लोग जो दुनिया के बड़े नेता या बड़े उद्यमी रहे हैं, वो संवाद क्षमता में बहुत माहिर होते हैं। महान नेताओं की एक पहचान यह है कि उनके सभी संवाद बहुत स्पष्टता और दृढ़ विश्वास के साथ होते हैं। कोई भी संदेश देते समय वे न तो झिझकते हैं और न ही हिचकिचाते हैं। उदाहरण के लिए, मार्टिन लूथर किंग जूनियर के प्रतिष्ठित भाषण "आई हैव ए ड्रीम" को लें। उन्होंने जिस दृढ़ विश्वास और स्पष्टता के साथ अपनी बात की, उसने पूरी दुनिया पर गजब का असर डाला। आज भी उनका ये भाषण हर किसी पर बहुत असर डालता है। इसे दुनिया के बेहतरीन भाषण में शुमार किया जाता है।
हो सकता है कि कई बार हम संवाद में कमजोर हों, हमारी संवाद क्षमता बेहतर नहीं हो। जब हम संवाद कर रहे हों तो आत्मविश्वास नहीं आ रहा हो लेकिन इसे हम अपने अभ्यास से दूर कर सकते हैं। दुनिया के बहुत से लोगों की कहानी ऐसी है कि वो अंतर्मुखी थे, कम बोलते थे, आत्मविश्वास नहीं था लेकिन उन्होंने जब अपनी इन कमियों को दूर किया तो वो गजब की प्रेरणा देने वाली ताकत में तब्दील हो गए।
विंस्टन चर्चिल संवाद की तकनीक में माहिर थे। वह अपने भाषणों में अक्सर अपनी बात मनवाने के लिए रूपकों और उपमाओं का इस्तेमाल करते थे। महान नेताओं की एक और प्रमुख संवाद की आदत यह है कि वे अपने श्रोताओं के साथ विश्वास और प्रामाणिकता स्थापित करते हैं। अब्राहम लिंकन को लीजिए। वह संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे उथल-पुथल वाले दौर में वहां के राष्ट्रपति थे। वह अपने दृढ़ विश्वास के प्रति सच्चे रहकर और ईमानदारी से संवाद करते थे, इसलिए वह लोगों का विश्वास जीतने में सफल रहे। हालांकि ये भी मानिए संवाद एकतरफा कभी नहीं होता बल्कि दोतरफा होता। अगर लोगों से संवाद वाकई करना चाहते हैं तो उनकी बातें भी सुनिए।
नेल्सन मंडेला इस मामले में बेमिसाल थे। वह एक राजनीतिक नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में विरोधी दृष्टिकोण को सुनने और रचनात्मक बातचीत में शामिल होने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते थे। उनकी इस क्षमता ने उन्हें व्यापक तौर पर अलग अलग पृष्ठभूमि के लोगों से उन्हें जोड़ा।
आपने अक्सर महसूस किया होगा कि आपका असरदार और बेहतर संवाद मुश्किल लग रहे कामों को आसान बना देता है। ये दरअसल आपकी एक बड़ी ताकत है। कोई भी ताकत तभी असरदार होती है जब उसके इस्तेमाल का सही तरीका जानिये। आपने अब तक पढ़ा सुना होगा कि अहंकार, क्रोध, अशिक्षा जैसी चीजें आपकी सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं लेकिन उससे भी बड़ी दुश्मन होती है संवादहीनता। जो लगातार बाधाएं खड़ी करती है। महात्मा गांधी को उनके साथी अक्सर कहा करते थे कि अंग्रेजों के लाख सितम के बावजूद आप उनके साथ बातचीत की टेबिल पर बैठकर बात कैसे कर लेते हैं। तब गांधीजी यही कह कहते थे कि समस्या का हल बातचीत से निकलता है न कि संवादहीनता से। यूं तो दुनिया में तमाम समस्याएं मुंह बाए हमेशा खड़ी रहती हैं लेकिन बहुत सी समस्याएं सुलझी भी इसीलिए क्योंकि संवाद को ताक पर नहीं रखा गया। सही बात है कि संवाद है तो जीवन है। संवाद बहते पानी की तरह है, जिसे हमेशा बहने दें। बहने में ही उसकी गति है और जीवन की गति है। अंत में डार्विन जैसे उन प्रणेताओं को भी याद किया जाना चाहिए जिन्होंने हमें ये बताया कि संवाद का नाता दुनिया में कहां-कहां तक फैला हुआ है।
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