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तेज़ी से बढ़ती मानसिक समस्याएं और समाधान

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  06-Nov-2023 | अजय सिंह



समय कभी स्थिर नहीं रहता। यह परिवर्तित होता रहता है। यह परिवर्तन अपने साथ जीवन के सभी आयामों को परिवर्तित कर देता है। आज से 50 वर्ष पहले की पारिवारिक संरचनाएँ, कॅरियर व वैवाहिक जीवन, सामाजिक रीति-रिवाज, मान्यताएँ, आकांक्षाएँ, महत्वाकांक्षाएँ व मनोरंजन के साधन इत्यादि आज से बिल्कुल भिन्न थे। किंतु विज्ञान व तकनीकी, सिनेमा व संचार के माध्यमों ने नित नए आयाम स्थापित करके सबकुछ बदल दिया है। नतीजन आज के युवाओं की सोच-समझ, जीवनशैली, रहन-सहन, जीवन के प्रति धारणाएँ व महत्वाकांक्षाएँ इत्यादि पिछली पीढ़ी से बिल्कुल भिन्न हैं। विज्ञान व तकनीकी इन चीज़ों को दिन-प्रतिदिन तेज़ी से बदलती ही जा रही है। कभी बहुत धीमी गति से बदलाव वाली दुनिया आज विज्ञान व तकनीकी, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार के साधनों इत्यादि के माध्यम से तीव्र बदलाव की साक्षी बन रही है। स्थिति यह है कि आज की हमारी नई तकनीकी, योजनाएँ व कॅरियर के प्रति धारणाएँ आज से पाँच वर्ष बाद भी आज की ही तरह प्रासंगिक व आकर्षक होंगी अथवा नहीं, इस विषय पर कुछ कहा नहीं जा सकता है।

तीव्र बदलाव के ऐसे दौर ने युवाओं को मानसिक तौर पर एक द्वंद्व में डालने का काम किया है। एक तनाव पैदा हुआ है। उसके लिये आज की भागमभाग वाली दुनिया बचपन से किताबों में पढ़ी अथवा बुज़ुर्गों की कहानियों से सीखी सरल व सुकून भरी दुनिया से एकदम भिन्न है। एक तरफ उसे राह दिखाने वाली पुरानी पीढ़ी है, जो अपने मिट्टी के कच्चे मकान में संयुक्त परिवार व खेती को प्राथमिकता देने वाले दौर से गुज़री है। जिसने बहुत धीमी गति वाले सामाजिक-आर्थिक बदलाव देखे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उसके सामने आधुनिकता से सराबोर व वैश्वीकरण की दौड़ में शामिल तेज़ी से भागती हुई चकाचौंध वाली एक ऐसी नवकिशोर दुनिया है, जहाँ एकल परिवार, नौकरी व भौतिकवाद का चकाचौंध है। जहाँ पूरी दुनिया दौलत, शोहरत व तथाकथित सफलता के पीछे भाग रही है।

ऐसे में आज का युवा खुद को एक ऐसे व्यस्त बाज़ार में खड़ा पा रहा, जहाँ उसे मानवीय मूल्य (विश्वास, रिश्ते, नाते, स्नेह, लगाव, त्याग, समर्पण, सेवा, आस्था, जीवनमूल्य इत्यादि) कम होते दिख रहे हैं और पैसों से लगभग सबकुछ खरीदा व बेचा जा रहा है। उसके सामने एक ऐसी दुनिया है, जहाँ पैसों की कीमत पर शादी-विवाह, रिश्ते-नाते, मित्रता इत्यादि तक टूट व बिखर रहे हैं, हिंसा हो रही है। नौकरी, शोहरत व पैसों के वज़न के आधार मात्र पर रिश्ते बन व बिगड़ रहे हैं। वह एक नए मान्यताप्राप्त आधुनिक दौर को देख रहा है। जहाँ लोगों के अपने खुद के मकान में रहते हुए परिवार संग सुकून व शांति से स्वरोज़गार के माध्यम से आय के स्रोत विकसित करके स्वाभिमान का जीवन जीने की अपेक्षा शहरों में किराये के मकान अथवा बहुमंजिली इमारतों के किसी एक तल में एकल परिवार संग बिताने को श्रेष्ठ माना व सराहा जा रहा है। जहाँ सफलता, सामाजिक स्वीकार्यता और सम्मान का सिर्फ और सिर्फ एक ही पैमाना है, और वो है पैसा! वह बाज़ार को जीवन की गुणवत्ता, मानसिक शांति, सुकून, व्यक्तिगत रुचि-अरुचि, निष्ठा, कर्तव्यपरायणता इत्यादि को निगलते देख रहा है। शांति, सुकून, प्रेम, साहित्य, त्याग, समर्पण इत्यादि किताबी दुनिया की बातें मात्र होती दिख रही हैं। बाज़ार द्वारा संचालित दुनिया में सफलता के स्थापित मानकों के चलते युवा खुद के भीतर खुद को ही नहीं खोज पा रहा है। वह खुद से दूर होता दिख रहा है। उनके मन में भी कम समय में अधिक-से-अधिक धन, दौलत, शोहरत इत्यादि कमाकर सफल होकर सामाजिक स्वीकार्यता हासिल करने की हड़बड़ी है। इस आभासी लक्ष्य में असफल होने पर युवाओं में खुद के प्रति हीनता व कुंठा भर रही है। उसे हताशा का सामना करना पड़ रहा है।

इन सबका नतीजा यह है कि किशोरावस्था को पार कर चुका हर आयुवर्ग का व्यक्ति आज या तो प्रतिस्पर्धात्मक हड़बड़ी में है या खुद से असंतुष्ट है या फिर मानसिक रूप से परेशान है। धीरे-धीरे कई लोगों में यह परेशानी इस कदर बढ़ जा रही है कि वो डिप्रेशन, हाइपरटेंशन से ग्रसित हो रहे हैं। जबकि कुछ लोग तो आत्महत्या जैसे कदम तक उठा ले रहे हैं। आधुनिकता की चकाचौंध दौड़ में चौंधियाए हम किस दिशा में दौड़े जा रहे हैं, इसका मूल्यांकन समाज द्वारा नहीं किया जा रहा है। स्थिति यह है कि बाहर से सहज, खुश व तंदरुस्त दिखने वाला व्यक्ति भी भीतर से इस कदर टूटा हुआ है या मानसिक परेशानियों की कितनी बुरी अवस्था से गुज़र रहा है, कुछ कहा नहीं जा सकता। आए दिन हम ऐसी बातें सुनते हैं कि फलाँ व्यक्ति तो बहुत मज़बूत था। वह तो हमेशा खुश, प्रेरित और उत्साहित दिखता था। वह तो खुद दूसरों को सँभालते फिरता था, वह तो इतना सफल था, फिर उसने ऐसा कदम क्यों उठा लिया। उसे किस चीज़ की कमी थी?

अगर हम युवाओं की बात करें तो युवा वर्ग सबसे ज़्यादा परेशान है। क्योंकि आमतौर पर यह वो उम्र होती है, जिसमें युवा वर्ग परिवार, समाज, रिश्ते-नातों, कॅरियर, विवाद, प्रेम इत्यादि के न सिर्फ अनिश्चितताओं से भरे ट्रांज़िशन फेज़ से गुज़र रहा होता है बल्कि ये सब उसके लिये बिल्कुल नए अनुभव की होती हैं, इसके पहले उसे इन आयामों में कभी धूप-छांव नहीं देखे होते हैं, कभी उनमें आने वाली चुनौतियों को नहीं देखा होता है, जिसके चलते वह स्ट्रेस मैनेजमेंट नहीं कर पाता और अवचेतन मन में एकसाथ इतनी बातें उलझ जाती हैं, वह मानसिक परेशानियों की उस अवस्था में पहुँच जाता है, जहाँ से वह अपनी परेशानियों की खुद भी कोई एक निश्चित वज़ह नहीं खोज पाता है और न ही किसी को बता पाता है। उदाहरण के तौर पर हम यहां कुछ उदाहरण दे रहे हैं, जो सामान्य तौर पर मानसिक समस्याओं की वज़ह बनते हैं…

वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और भावनात्मक लय की कमी.

तेज़ी से बदलती दुनिया में लोगों की वैवाहिक जीवन और अपने जीवनसाथी से अपेक्षाएँ भी बढ़ी हैं। दो पीढ़ी पहले वैवाहिक जीवन एक पारंपरिक जीवन हुआ करता था, जिसमें महिलाएँ घर की ज़िम्मेवारी सँभालती थीं और पुरुष बाहर नौकरी या व्यवसाय के माध्यम से धनोपार्जन करते थे। या फिर, पति-पत्नी मिलकर अपनी खेती करते थे। किंतु वैश्वीकरण के दौर में अत्याधुनिक तकनीकी से लैस दुनिया आज आमूलचूल परवर्तनों की साक्षी बन चुकी है। पारंपरिक जीवनशैली अब बदलती जा रही है। स्त्री-पुरुष अधिकारों में न सिर्फ समानता आई है बल्कि उन्हें लेकर अब कानून भी सख्त हुए हैं। दो पीढ़ियों पहले के आर्थिक तंगी से गुज़रते देश में स्त्रियों-पुरुषों की अपने जीवनसाथी से बहुत ऊँची अपेक्षाएँ नहीं होती थीं। किंतु आज देश में अत्याधुनिक तकनीकी, वैश्वीकरण, जीडीपी समेत प्रतिव्यक्ति आय बढ़ने के चलते संपन्नता बढ़ी है। इससे आज की नई पीढ़ी पहले के आर्थिक तंगी वाले दौर में किफायती व सामंजस्य वाली वैवाहिक जीवनशैली की बजाय स्वभावत: अपने वैवाहिक जीवन व जीवनसाथी से ढेरों अपेक्षाएँ पाल लेती है। इसके अलावा कॉरपोरेट कंपनियों ने बाजारों में विविध अनावश्यक उत्पादों की मांग-खपत बढ़ाने के लिये विज्ञापनों का इस्तेमाल किया है। अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाने के इरादे से सोची-समझी रणनीति के तहत सिनेमा व विज्ञापनों के माध्यम से लोगों के मन में वैवाहिक जीवन समेत जीवन के अलग-अलग आयामों में नए-नए आभासी मानक पैदा कर दिये हैं। इन सारी घटनाओं ने लोगों को जीवन में विवाह जैसे पवित्र और खूबसूरत पड़ाव को सहज ज़िम्मेदारी, स्नेह, प्रेम व खुशहाली का माध्यम बनाने की बजाय उसे एक बोझिल, खर्चीले, आडंबर, स्वांग रचने, प्रेम के नाम पर एक-दूसरे की निजी ज़िंदगी पर नियंत्रण स्थापित करने व चकाचौंध से भरा पड़ाव बनाने का काम किया है और उन मानकों पर खरा न उतरने पर वैवाहिक जीवन में खटास, शिकायतें, कलह व उपद्रव शुरू हो रहे हैं। नतीजन जो रिश्ता व्यक्ति के जीवन में उसकी ताकत, ऊर्जा, आत्मविश्वास, हौसला व खुशी का एक स्रोत बनना चाहिये, वह उसके लिये दुख, आंतरिक पीड़ा व अवसाद का माध्यम बनकर रह जा रहा है।

बुजुर्गों में द्वंद्व.

नए परिवेश में केवल युवा ही नहीं परेशान है। बुजुर्ग भी मानसिक परेशानियों से गुज़र रहे हैं। बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक भी एकदम नए दौर को देख रहे हैं। उनके लिए ये सब बिल्कुल नये हैं। वो अपने सामने नई पीढ़ी को एक नई जीवनशैली व रहन-सहन में देख रहे हैं, जो इससे पहले की पीढ़ी में नहीं था। नतीजन वो भी अपने बच्चों से महत्वाकांक्षी अपेक्षाएँ पाल रहे हैं। इसके अलावा नए दौर में कई जगहों पर वो जेनरेशन डिफरेंस होने के चलते खुद को हासिए पर खड़ा पा रहे हैं। जिससे उनके अंत:मन में कहीं-न-कहीं मलाल, अनादर अथवा असंतोष का भाव भरा रहता है। इसके अलावा कॅरियर में कइयों के बच्चों की सामाजिक-आर्थिक असफलताएं भी कई बार उन्हें समाज में अपेक्षित जगह नहीं दिला पाती। ये सारी परिस्थितियां मिलकर उनके भीतर भी असंतोष, तनाव व अवसाद तक की वज़ह बन जाती है। कई बार ये सारे असंतोष मिलकर पारिवारिक तनाव की भी वज़ह बन जाते हैं।

लोकलज्जा भी है एक वज़ह:-

हमारे समाज में एक धारणा है कि मज़बूत व्यक्ति कभी परेशान नहीं होता। वह कभी मानसिक परेशानियों से नहीं गुज़रता। या फिर, मानसिक परेशानियों से गुज़रने वाले, डिप्रेशन अथवा हाइपरटेंशन से जूझने वाले व्यक्ति कमज़ोर होते हैं। फिर लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते और उनका सामाजिक वजूद हल्का होने लगता है। जबकि ऐसी धारणा नहीं होना चाहिये। परेशानियाँ, द्वंद्व, तनाव इत्यादि हर किसी के जीवन में आते हैं। कई बार तो ऐसा भी देखा जाता है कि जो उन्हें गंभीरता से लेते भी हैं, वो बाद में उनके उस कमज़ोर पक्ष का सामाजिक-राजनीतिक हितों में इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में व्यक्तिगत गरिमा को बचाने के चलते कोई भी व्यक्ति आंतरिक तौर पर ऐसी किसी गंभीर स्थिति से गुज़रने पर भी अपनी परेशानियों को किसी से भी साझा नहीं करता और बाहरी तौर पर सामान्य व खुश दिखता है। नतीजन, वह भीतर-ही-भीतर घुटता रहता है। कई बार व्यक्ति आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लेता है। यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है।

मानसिक समस्याओं से घिरने से बचने के समाधान:-

ओवर थिंकिंग से बचें:-

कई बार ऐसा होता है कि आप भविष्य के प्रति बहुत ज्यादा अपेक्षाएँ व कल्पनाएँ इत्यादि बुन लेते हैं। यहाँ तक कि कई बार लोग मन-ही-मन भविष्य के प्रति तमाम ऐसी कपोल कल्पनाओं के तहत पैदा हुए अज्ञात भय, आक्रामकता अथवा नकारात्मकता को इतना भर लेते हैं कि वो चिंताग्रस्त अथवा भयाक्रांत जीवन जीने लगते हैं। और अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि जीवन में जितनी कल्पनाएँ आप बुनते हैं, जिन चीज़ों से आप डरते हैं, उनमें से ज्यादातर परिस्थितियां कभी घटित ही नहीं होती हैं। यानी, आप अनावश्यक कल्पनाओं से डरे-सहमे हुए तनाव को ढोते रहते हैं। आपने यह भी गौर किया होगा कि आपके जीवन में जितनी भी अच्छी घटनाएँ घटी होंगी, उनके बारे में भी आपने कुछ माह पहले सोचा तक नहीं होगा। यहाँ तक कि जो चीज़ें बुरी होती हैं, उनका भी दूरगामी परिणाम आपके लिये अच्छा ही होता है। ऐसे में जब जीवन में अपना सोचा अच्छा-बुरा कुछ होता ही नहीं है, सबकुछ अप्रत्याशित होता है और अच्छे के लिये ही होता है, तो फिर क्यों उन बातों की टेंशन लेना। सोचना ही है तो कुछ अच्छा सोचें, सकारात्मक सोचें। ऐसी कल्पनाएं जो आपको सकारात्मक ऊर्जा, निखार, प्रसन्नता और जीवन के प्रति उल्लास देती हैं। इसलिये अज्ञात भय से बचें। इसके लिये ओवर थिंकिंग को कहें गुड बाय!

खुद को समय दें.

भरपूर नींद लें। खुद को भी समय दें। मेडिटेशन, एक्सरसाइज़, बागवानी समेत अपनी तमाम हॉवीज़ को समय दें, प्रकृति से जुड़ाव रखें। खुश रहें और जहाँ रहें, वहाँ पूरी तरह रहें। अर्थात, दिमागी उधेड़बुन से बाहर निकलें। क्योंकि कई बार चिंता करना या उधेड़बुन में उलझे रहना आपकी आदत बन जाती है। एक बार आदत बन जाने के बाद व्यक्ति का दिमाग अकारण चिंतित रहने या उलझे रहने के बहाने ढूँढ़ ही लेता है। जिन परिस्थितियों में दूसरे लोग सहज या खुश रहते हैं, उनमें भी आप तनाव पाले रहते हैं। दिमागी उधेड़बुन से बचने के लिये जितना हो सके सरल बनें। चीज़ों को सरल ढंग से देखें और जटिल-से-जटिल समस्या का सरल ढंग से समाधान खोजें। दूसरों की निजता का भी ख्याल करें और थोड़ा लचीले बने। जड़ता से बचें। परिवर्तनों को स्वीकार करना सीखिए।

निजी ज़िंदगी में दूसरों की निजता का सम्मान करें और उनकी जगह खुद को रखकर सोचें.

अक्सर यह होता है कि हम निजी जिंदगी में अपनी परिस्थितियों व मन:स्थिति के अनुसार ही दूसरों से बर्ताव करते हैं और अपने अनुकूल दूसरों से अपेक्षाएँ रखते हैं। किंतु हम दूसरे की स्थिति-परिस्थिति को इग्नोर कर देते हैं। हम अपने मित्र, परिजन, जीवनसाथी या संबंधियों से अपेक्षाएँ तो खूब करते हैं किंतु हम यह भूल जाते हैं कि उनकी भी हमसे कुछ अपेक्षाएँ होंगी। इस तरह से दोनों पक्ष एक-दूसरे से सिर्फ अपेक्षाएं ही करते हैं किंतु अपने दायित्वों या दूसरे पक्ष की परिस्थिति को इग्नोर करते हैं। इससे निजी रिश्तों या संबंधों में तनाव पैदा होती है और व्यक्ति का अपने कार्यक्षेत्र में भी पर्फॉर्मेंस गिरता है और असफलताएं मिलती हैं। इस तरह से धीरे-धीरे व्यक्ति मानसिक परेशानियों से गुज़रने लगता है। बेहतर हो कि हम अपने दायित्वों का भी खयाल रखें। जब आप अपने कर्तव्यों पर खरे उतरेंगे तो अगर रिश्तों में मात्र नासमझी की वज़ह से खटास है तो फिर अगला व्यक्ति भी थोड़ी देर से ही सही किंतु मूल्यांकन अवश्य करेगा और आपके प्रति आदर से भरेगा। और एक समय बाद संबंधों में सुधार होने लगेगा। एक समय के बाद आप पाएंगे कि आपके व्यक्तित्व का मूल्यांकन एकदम वही हुआ, जो आप थे, जिसके आप हकदार थे।

रिश्तों में थोड़े लचीले बनें.

रिश्तों-नातों, संबंधों, वैवाहिक या पारिवारिक जीवन, सच्चे मित्रों, परिजनों इत्यादि के बीच यदि बहुत अपवाद जैसी स्थिति न हो तो किसी नाराजगी या मनमुटाव की स्थिति में अगर थोड़े से लचीले बनने या झुक जाने से रिश्ते बच जाते हैं, शांति स्थापित हो जाती है और आप आंतरिक रूप से सहज हो जाते हैं तो अपनों व शुभचिंतकों के लिये लचीला हो जाना, रिश्तों के सम्मान में थोड़ा-सा झुक जाना बुरा नहीं है। न तो यह हार है और न यह कायरता है। बल्कि यह सूझबूझ, बहादुरी व समझदारी भरा निर्णय है। यह सबके वश की बात भी नहीं होती। क्योंकि इससे आप अपनी जीवनऊर्जा को व्यर्थ के मानसिक तनावों में खर्च होने से बचा लेंगे। यह ऊर्जा आप रचनात्मक कार्यों, कॅरियर, व्यवसाय व खुद के साथ-साथ आमजन के हित में खर्च कर सकते हैं। जो ऊर्जा आप परिजनों अथवा शुभचिंतकों के बीच ही निरर्थक घर्षण में खर्च करते, खुद को ही कमज़ोर करते, उसे सही दिशा में लगाकर आप जीवन के अन्य आयामों में ऊँचाइयों को हासिल कर सकते हैं। इससे आपके साथ-साथ आपसे जुड़े लोगों का आत्मसम्मान बढ़ेगा। वो गौरवान्वित महसूस करेंगे और वही लोग आप पर गर्व करते नहीं थकेंगे।

न घबराएँ चुनौतियों से:-

एक बात हमेशा ध्यान रखें कि अपने कार्यक्षेत्र में कुछ बेहतर व रचनात्मक करने वाला या बेहतर करने के लिये प्रयासरत हर व्यक्ति परेशान है। परेशानियाँ हर किसी के जीवन में हैं। दुनिया की महान-से-महान हस्तियों से लेकर आम व्यक्ति तक परेशान है। महात्मा गांधी हों या अब्राहम लिंकन, भारत के प्रधानमंत्री हों या दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र माने जाने वाले देश अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष हों, सुकरात हो या मेरी क्युरी या फिर स्टीफन हाॅकिंग इत्यादि किसी का भी जीवन आसान राहों से नहीं गुज़रा है। यहाँ तक कि ऊँचाइयों पर पहुँचे लोगों की राहों की कठिनाइयाँ तो आम व्यक्तियों की कल्पना से भी परे रही हैं। अगर राहें आसान ही होतीं तो हर कोई वहाँ भला क्यों न पहुँचना चाहता। अर्थात, जब भी आप जीवन में अपने कंफर्ट ज़ोन से ऊपर उठेंगे तो आपके जीवन में आंतरिक व बाह्य स्तर के प्रतिरोध तो आएंगे ही। विज्ञान भी यह स्पष्ट कहता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो जब आप साइकिल से आगे बढ़ते हैं, तब भी आपको हवाओं के प्रतिरोध को भेदना होता है। परेशान वही नहीं है, जो कंफर्ट ज़ोन में है। यह कहना अतिशयोक्ति अथवा व्यंग नहीं होना चाहिये कि परेशानियों से मुक्त केवल वही रहे हैं, जो दूसरों के दान, आश्रय अथवा संरक्षण पर आश्रित हैं। अगर थोड़े से सख्त किंतु विनम्र शब्दों में कहा जाए तो यह कहना अशिष्टता नहीं होनी चाहिये कि केवल भीख मांगने वाले व्यक्ति ही चिंता, परेशानियों, द्वंद्व व तनाव से मुक्त हैं। अन्यथा, हर व्यक्ति के जीवन में परेशान होने, तनाव अथवा अवसादग्रस्त होने की पर्याप्त वज़हें होती हैं। बस अंतर यह होता है कि जो लोग खुश दिखते हैं और विकासपथ पर प्रगतिशील होते हैं, वो स्ट्रेस मैनेजमेंट जानते हैं। उनमें स्ट्रेस मैनेजमेंट की कला होती है। वो जानते हैं कि जीवन में किस चीज़ को कितनी तवज्जो देनी है, किस चीज़़ को दिमाग़ में कितनी जगह देनी है। जबकि जो अवसाद के शिकार हो जाते हैं, वो भावनाओं के चलते स्ट्रेस मैनेजमेंट करना नहीं चाहते।

यानी, यह बात तय है कि हर व्यक्ति के जीवन में परेशान होने की अनगिनत वज़ह है। और जब हर व्यक्ति के जीवन में परेशानियाँ हैं तो अकेले आप ही क्यों चिंता करते हैं। इसलिये बहुत परेशान होने की बजाय जीवन में बेहतर दिशा में आगे बढ़ते समय आने वाली चुनौतियों से मत घबराएँ उन्हें सहज स्वीकार करें। जीवन में जितना मिल जाए, बस उसे ही अपना मानकर उसी में सर्वोत्तम करना चाहिये क्योंकि संतुष्ट तो कोई भी नहीं है। वैसे भी अंततोगत्वा सब तो यहीं छूट जाता है, कुछ भी स्थायी नहीं है। फिर क्यों रिश्तों-नातों इत्यादि के बीच अहंकार पालना या सफलता-असफलता इत्यादि को इतनी गंभीरता से लेना कि आप जीवन की गुणवत्ता, प्रतिभा व शांति जैसी बेसकीमती चीज़ों को ही गँवा दें। अगर सब पाकर भी हम खुशी न पा सके तो वो उपलब्धि हमारे किस काम की। मर्लिन मुनरो जैसी अनगिनत वैश्विक हस्तियों की जीवनी यह बताने को पर्याप्त है कि अंतत: सबकुछ हासिल करके भी अगर आप अपना दिमाग को संभालना व स्ट्रेस मैनेजमेंट करना नहीं सीख पाए तो वो सारी चीज़ें व्यर्थ साबित होती हैं। हमारा दिमाग ही हमारे खिलाफ काम करने लगता है। दरअसल मानव के मन का स्वभाव ही होता है कि हम जो नहीं हासिल कर पाते, उसके लिये परेशान होते हैं किंतु उससे कई गुनी बड़ी चीज़ें भले हम हासिल कर चुके हैं, हम उनका आदर नहीं करते। इसीलिये निदा फाज़ली लिखते हैं…

दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है।
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।

इसीलिये जीवन में आप अपना सर्वोत्तम परफॉरमेंस दें। पूरी कोशिश के बाद जो सफलता व आयाम मिल जाए, उसे ही अपना मानें। बाकी दुनिया जादू का आभासी खिलौना मात्र है। दूसरों की धन-दौलत-शोहरत व उपलब्धियों या आडंबरों इत्यादि को बहुत गंभीरता से लेकर दमित न हों। क्योंकि सर्वोच्चता का शिखर हमेशा रिक्त होता है। जिससे आप प्रभावित हो रहे हैं, उससे भी ऊपर कोई है और उससे भी ऊपर कई लोग हैं। यह शृंखला कभी खत्म नहीं होती। दुनिया के गोल होने के चलते वो चीज़ें फिर घूम-फिरकर ज़ीरो पर आ गिरती हैं। इसे ऐसे समझें कि देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री माना जा सकता है किंतु उसे भी वह ताकत एकदम आम व्यक्तियों के मतदान से मिलती है। हर पाँच साल बाद वो जनता के सामने हाज़िर होते हैं। इसलिये हमेशा सहज, खुश व आनंदित रहें। न दूसरों से बहुत प्रभावित हों और न ही दूसरों की सफलता से कुंठित होकर अकारण बहुत तवज्जो दें। उसकी उपलब्धि उसकी है, आपकी उपलब्धि आपकी है। थोड़े लचीले व विनम्र बनें। कुछ अच्छे और खाटी मित्र रखें। स्वावलंबी बनें और दैनंदिन समस्याओं को इतनी गंभीरता से न लें कि एक नई मानसिक समस्या पैदा हो जाए। क्योंकि समस्याएँ हर किसी के जीवन में हैं और जो हर किसे के जीवन में ही है तो उसे लेकर अकेले आप ही हाइपर सेंसटिव क्यों हों।

अगर आप इन चीज़ों को समझ लेते हैं तो इस बात की प्रबल संभावना है कि आप न सिर्फ चिंता व तनाव को अलविदा कह चुके होंगे बल्कि कॅरियर व कार्यक्षेत्र में सहज खुशी व उल्लास के साथ अपना सर्वोत्तम देते हुए सार्वजनिक व निजी जीवन में एक अच्छे व्यक्ति भी साबित होंगे।



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