इसरो की उड़ान: अंतरिक्ष शक्ति बनता भारत

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  28-Aug-2023 | राहुल कुमार




इसरो एक ऐसा नाम है जो लगातार सुर्खियाँ बटोरता रहता है। 124 अंतरिक्षयान मिशन, 94 लॉन्च मिशन, 2 पुनः प्रवेश मिशन, 15 छात्र उपग्रह और 431 विदेशी उपग्रहों के नामों के साथ इसरो का नाम जुड़ा हुआ है। ‘चन्द्रयान-3’ की सफलता के बाद इसरो ने ‘आदित्य-एल1’ को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है। एक तरफ जहाँ ‘चन्द्रयान-3’ के माध्यम से चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश भारत बन गया है, वहीं दूसरी तरफ यदि ‘आदित्य-एल1’ 125 दिनों की यात्रा के बाद पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर एल-1 बिंदु पर स्थापित होता है तो ऐसा करने वाला एशिया का पहला देश भारत बन जाएगा। कुल सात ‘पेलोड्स’ वाला आदित्य-एल1 सूर्य का अध्ययन करेगा। दरअसल इसरो भारतीयों को गर्व करने के अचंभित कारण प्रस्तुत करता रहता है।

चुनौतियों का सामना करते हुए अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत को बुलंदी पर पहुँचाना इसरो का लक्ष्य रहा है। साइकिल व बैलगाड़ी से शुरू हुई इसरो की अंतरिक्ष यात्रा मंगल और चाँद के बाद अब एल-1 बिंदु तक पहुँचने वाली है। जब-जब इसरो की कामयाबी से दुनिया रूबरू हुई है तब-तब भारत प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सशक्त हुआ है। अंतरिक्ष अनुसंधान पर मजबूत होती इसरो की पकड़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को मजबूती प्रदान कर रही है। ‘चंद्रयान-3’ मिशन ने साबित कर दिया है कि इसरो की उड़ान काफी बड़ी होने वाली है। “जिस प्रकार का लोहा इसरो दुनिया से मनवा रहा है- वह दिन दूर नहीं जब भारत अंतरिक्ष अनुसंधान में नेतृत्वकर्ता की भूमिका में नज़र आए!” असंभव को संभव कर दिखाने का सामर्थ्य रखने वाले इसरो ने भारत को अमेरिका, रूस, चीन, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की सूची में दाखिल करा दिया है। कई मायने में इसरो इन सभी अंतरिक्ष एजेंसी से आगे भी निकल चुका है।

इसरो की यात्रा आसान नहीं रही है। स्वतंत्रता के बाद भारत अनेकों समस्याओं और चुनौतियों से जूझ रहा था; ब्रिटिश हमारे ऊपर ऐसे राज करके गए कि गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी को दूर करने में दशकों लग जाने थे। इसके बावजूद वर्ष 1962 में ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR)’ की स्थापना होती है- जिसे वर्ष 1969 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)’ में रूपांतरित कर दिया जाता है। “वर्ष 1963 में साउंडिंग रॉकेट से अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत करने वाला भारत- वर्ष 2023 में चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बनता है तो यह प्रतिफल इसरो के तप, त्याग, परिश्रम और ज़िद का है।” अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत इतना आगे निकल जाएगा यह किसी ने नहीं सोचा था। मंगल, चाँद और सूर्य के बाद इसरो अब गगनयान और शुक्रयान मिशन में जुटा हुआ है।

विश्व में गिने-चुने देश हैं जिनका अपना ठोस अंतरिक्ष कार्यक्रम है। बहुत कम देश हैं जो इस पृथ्वी के अलावा किसी अन्य ग्रहों और उपग्रहों में दिलचस्पी रखते हैं। विकसित देशों की मानें तो विकासशील देश इसके बारे में सोच भी नहीं सकता! लेकिन भारत आज मजबूती के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अमेरिका, रूस, चीन, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की कतार में खड़ा है। भारत का लोहा मनवाने में इसरो के वैज्ञानिक दिन-रात एक किए रहते हैं। इसी का नतीजा है कि कम खर्च पर अंतरिक्ष मिशन को सफल बनाना इसरो की विशेषता बन गई है। यदि मैं कहूँ कि भारत अंतरिक्ष की दुनिया में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनने की दहलीज़ पर खड़ा है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी। “खुदको सुपरपावर मानने वाले देश यदि आज इसरो से अपना उपग्रह प्रक्षेपित करवाता है और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारत के साथ कदमताल मिलाकर चलना चाहता है तो कुछ तो बात होगी!”

अभी तक 34 से अधिक देशों ने अपने 431 कृत्रिम उपग्रहों को इसरो की सहायता से कक्षा में प्रक्षेपित करवाए हैं। विभिन्न देशों के अंतरिक्ष एजेंसियों के अंतरिक्ष मिशन में इसरो मदद करता रहा है। इसरो के रास्ते भारत का संबंध कई देशों से सुधरा है। कई विकसित देश अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत से सहयोग लेने के लिए भारत के करीब आ रहे हैं। भारत कई विकासशील देशों को अंतरिक्ष क्षेत्र में मदद कर रहा है। हमारे पड़ोसी देश इसरो के उपग्रहों का लाभ भलीभाँति उठाते हैं। अंतरिक्ष में भारत की उपस्थिति मानव हित को साधने से अभिप्रेरित रही है। परिणामस्वरूप इसरो की कामयाबी विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के लिए सुखद है।

“वर्ष 2009 में जब ‘चन्द्रयान-1’ ने चन्द्रमा पर पानी होने के सबूत दिए तो दुनिया आश्चर्यचकित थी। वर्ष 2014 में मंगल ग्रह पर मार्स ऑर्बिटर मिशन कामयाब हुआ, प्रथम प्रयास में ऐसा करने वाला भारत विश्व का पहला देश बना था।” तब चीन ने भारत के सफल मंगलयान को ‘प्राइड ऑफ एशिया’ कहा था। किंतु ‘चन्द्रयान-2’ की असफलता ने भारत और इसरो पर ऊँगली उठाने का मौका कुछ देशों को दिया। लेकिन इसरो के वैज्ञानिक रुकने वाले नहीं थे। जितनी लागत में हॉलीवुड की एक मूवी बनती है उतने में इसरो ने ‘चन्द्रयान-3’ मिशन को कामयाब किया है। अतीत को टटोलें तो आप पाएँगे कि किसी भी अंतरिक्ष मिशन से पहले अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भारत और इसरो का मज़ाक उड़ाती थी, जब मिशन सफल होता तो वही प्रशंसा करती थी। आज सच्चाई यह है कि कम खर्च पर मिशन को कामयाब बनाने की कला इसरो के अलावा किसी अन्य अंतरिक्ष एजेंसी में नहीं है। इसलिए अमेरिका, रूस, चीन, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी धीरे-धीरे ही सही- इसरो के प्रशंसक बन गए हैं।

भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति करवट लेगी। इसरो के कई बड़े मिशन सामने आने वाले हैं। आने वाले वर्षों में इसरो अपने तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा। इसरो की इच्छा यह भी है कि ‘भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन’ हो; यदि ऐसा संभव हुआ तो अंतरिक्ष अनुसंधान में इसरो नासा की भाँति ही बढ़त बनाने लगेगा। दरअसल जैसे-जैसे अंतरिक्ष में इसरो मजबूत होगा वैसे-वैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की उपस्थिति मजबूत होगी। टिकाऊ अर्थव्यवस्था, बड़ी सैन्य शक्ति, बड़ा बाज़ार, परमाणु शक्ति से लैस होना और अंतरिक्ष में मजबूत रफ़्तार के कारण भारत को निकट भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में खूब तरजीह दी जाएगी। अमेरिका चाह रहा है कि भारत नाटो प्लस का सदस्य बने! क़्वाड, I2U2, शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स, सार्क और G20 जैसे संगठनों में भारत की मौजूदगी को इसरो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से और मजबूत करेगा। “इसरो अंतरिक्ष में जितनी लंबी छलाँग लगाता जाएगा- भारत उतना ज़्यादा सशक्त होता जाएगा।”

अंतरिक्ष में इसरो ने एक के बाद एक कारनामा किया है; वर्ष 1980 में ‘एसएलवी-3’ का सफल परीक्षण कर भारत को उन देशों में शामिल करा दिया जो अपने उपग्रहों को खुद प्रक्षेपित कर सकते हैं। एसएलवी-3 ने ‘रोहिणी उपग्रह आरएस-1’ को कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया था। वर्ष 1983 में ‘इनसैट-1बी’ को प्रक्षेपित किया गया। इसने दूर-संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में भारत को सक्षम बनाया। वर्ष 1994 में ‘पीएसएलवी’ के सफल प्रक्षेपण से इसरो को स्वदेशी प्रक्षेपण क्षमता प्राप्त हुई। अगस्त 2016 में ISRO ने ‘स्क्रैमजेट (सुपरसोनिक दहन रैमजेट)’ इंजन का परीक्षण सफलतापूर्वक किया। जून 2017 में इसरो ने देश का सबसे भारी रॉकेट ‘जीएसएलवी एमके-3’ के द्वारा 3136 किलोग्राम का उपग्रह ‘जीसैट-19’ को प्रक्षेपित किया। इससे पहले इसरो भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिये विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों पर निर्भर रहता था।

यह इसरो का ही कमाल है कि अमेरिका के ‘जीपीएस सिस्टम’ की तरह भारत का भी अपना ‘नेवीगेशन सिस्टम’ है, यह उपलब्धि वर्ष 2018 में ‘आईआरएनएसएस’ उपग्रह को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करने के बाद हासिल की गई थी। “इसरो अगले ही वर्ष 2019 में एंटी सैटेलाइट से लाइव सैटेलाइट को नष्ट करने में सफलता प्राप्त की; अंतरिक्ष में सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया था।” इसरो ने एक और चुनौतीपूर्ण मिशन को अप्रैल 2019 में अंजाम दिया; इसमें 29 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित कर तीन अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया था। उपग्रह प्रक्षेपण की सभी चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर चुके इसरो की यात्रा जारी है।

“इसरो की विकास यात्रा भारत को अंतरिक्ष में न केवल आत्मनिर्भर बनाने की रही है बल्कि एक मजबूत नेतृत्वकर्ता बनाने की भी है।” पिछले चार वर्षों में लगभग 150 निजी अंतरिक्ष कंपनियाँ अस्तित्व में आई हैं। ये टेक स्टार्टअप बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। भारत ने वर्ष 2020 में अंतरिक्ष अन्वेषण का दरवाजा निजी कंपनियों के लिए खोल दिया था। इसका सुखद नतीज़ा है कि वर्ष 2022 में ‘स्काई-रूट’ नाम की भारतीय निजी कंपनी द्वारा उपग्रह प्रक्षेपित किया गया। यदि इसरो के नेतृत्व में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय निजी कंपनियाँ अंतरिक्ष में विभिन्न उड़ान भरे तो परिणाम सराहनीय होगा। दरअसल इसरो की ओर आकर्षण का मूल कारण इसरो की पिछली उपलब्धियाँ रही हैं।

इसरो रिकॉर्ड बनाने और अपने ही रिकॉर्ड को ध्वस्त करने के लिए जाना जाता है। वर्ष 2016 में इसरो ने एक साथ कुल 20 उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित किया था। दुनिया अचंभित थी। भारत का इसरो फिर भी रूस के ‘रॉसकॉसमॉस’ से पीछे था; रॉसकॉसमॉस वर्ष 2014 में एक साथ 37 उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित किया था। इसरो को कुछ बड़ा करना था इसलिए वह भविष्य के मिशन में जुट गया। “वर्ष 2017 में पीएसएलवी-सी-37 के द्वारा कुल 104 उपग्रहों को कक्षा में एक साथ सफलतापूर्वक भेजकर इसरो ने विश्व-रिकॉर्ड बना दिया।” इसमें भारत के तीन, अमेरिका के 96 और इजराइल, नीदरलैंड, स्विटज़रलैंड, यूएई एवं कज़ाख़्स्तान के एक-एक उपग्रह शामिल थे। अंतरिक्ष अनुसंधान में हमेशा से कुछ नया करने और मानवहित को साधने के लिए इसरो को जाना जाता है। आज चन्द्रयान-3 की सफलता से कई अंतरिक्ष एजेंसी प्रसन्न हैं। वे पहले की तुलना में इसरो के साथ समन्वय के लिए ज़्यादा लालायित हैं। यह भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी है। इसका प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्पष्ट दिखेगा।

कम लागत पर उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण करने में इसरो की कोई तुलना नहीं है। वर्ष 1975 में इसरो ने भारत का स्वदेशी कृत्रिम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस के द्वारा प्रक्षेपित करवाया था। और “आज दुनिया के अधिकतर देश अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करवाने के लिए इसरो की तरफ उम्मीद-भरी नज़रों से देखते हैं।” गूगल और एयरबस जैसी बड़ी कंपनियाँ भी इसरो के द्वारा अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करवा चुकी हैं। उपग्रह प्रक्षेपण में इसरो पूर्णतः आत्मनिर्भर हो गया है। अब इसरो विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित कर भारत को आर्थिक और कूटनीतिक लाभ भी देने लगे हैं। इसके बावजूद वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कारोबार में इसरो की हिस्सेदारी मात्र दो फीसदी है। आवश्यकता इस बात की है कि इसरो की बजट में कोई कमी न हो, अंतरिक्ष अनुसंधान में पीपीपी मॉडल को बढ़ावा मिले, इसरो के कार्यक्षेत्र में विस्तार हो, लॉन्च पैड और व्हीकल असेंबली को बढ़ाया जाए जिससे इसरो अंतरिक्ष विज्ञान में भारत को रफ़्तार के साथ बुलंदी पर पहुँचाए!

गौरतलब है कि अंतरिक्ष क्षेत्र धीरे-धीरे ग्लोबल बिजनेस में बदल रहा है। इस क्षेत्र में इसरो अन्य देशों के अंतरिक्ष एजेंसी से आगे निकल सकता है। ‘ग्लोबल लॉन्च मार्केट’ पर बढ़त हासिल करने के लिए इसरो अपनी हिस्सेदारी पाँच गुना बढ़ाना चाहता है। इसलिए भारत अंतरिक्ष प्रक्षेपण के कार्य-क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है। भारत इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की बड़ी संभावना को तलाश रहा है। “दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत और दुनिया की उभरती हुई अंतरिक्ष एजेंसी इसरो; दोनों मिलकर मिसाल कायम कर सकते हैं।” भारत की उम्मीदें इसरो की कामयाबी पर टिकी है। इसरो का वर्तमान तो यही कहता है कि भारत भविष्य में अंतरिक्ष महाशक्ति बन जाएगा। दुनियाभर से इसरो को मिल रही वाहवाही से भारत की चमक बढ़ रही है। निकट भविष्य में इसके कई लाभ भारत को मिलने वाले हैं।

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान का सुखद भविष्य सुनिश्चित है। “विज्ञान की तरक्क़ी हमेशा आर्थिक तरक्क़ी से बड़ी होती है।” मंगलयान, चन्द्रयान और आदित्य एल-1 के बाद दुनिया की नज़र इसरो के गगनयान और शुक्रयान पर है। इसरो और नासा मिलकर ‘निसार’ नामक उपग्रह विकसित कर रहा है। निसार के द्वारा 12 दिनों में पूरे विश्व का मानचित्रण किया जाएगा। इसरो एक्सपोसैट, इनसैट-3डीएस और कई अन्य कृत्रिम उपग्रहों पर भी कार्य कर रहा है। इसरो की इच्छा वर्ष 2030 तक भारत के लिए खुदका अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण करने की है। इसरो यहीं तक रुकने वाला नहीं है, इसरो की उपलब्धियाँ तो यही कहती कि सितारों के आगे जहां और भी है…

  राहुल कुमार  

राहुल कुमार, बिहार के खगड़िया जिले से हैं। इन्होंने भूगोल, हिंदी साहित्य और जनसंचार में एम.ए., हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा तथा बीएड किया है। इनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये IIMC से पत्रकारिता सीखने के बाद लगातार लेखन कार्य कर रहे हैं।



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