चर्चा में क्यों
मणिपुर सरकार ने तामेंगलोंग ज़िले और आस-पास के इलाकों में अमूर फाल्कन/बाज़ों के शिकार, पकड़ने, मारने और व्यापार पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया है। स्थानीय रूप से कहुआइपुइना (Kahuaipuina) के नाम से जाने जाने वाले इस बाज़ को उनके प्रवास की अवधि के दौरान सुरक्षा प्रदान करने के लिये अधिकारी कुछ उपाय लागू कर रहे हैं, जिसमें एयर गन पर अस्थायी प्रतिबंध और निवासियों को गाँव के अधिकारियों के पास हथियार जमा करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। उल्लंघन करने पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत दंड लगाया जाएगा
फाल्कन्स की हत्या
- वैज्ञानिक नाम: फाल्को
- ये प्रवासी पक्षी हैं, जो पूर्वी रूस और उत्तरी चीन में अपने प्रजनन क्षेत्रों से हजारों किलोमीटर की यात्रा करके दक्षिण-पूर्व एशिया एवं दक्षिणी अफ्रीका के क्षेत्रों तक शीतकालीन प्रवास हेतु आते हैं
- स्लेट-ग्रे रंग का शरीर, नुकीले पंख और छोटी पूँछ के कारण इनका स्वरूप विशिष्ट होता है
- मुख्यतः कीटभक्षी होने के कारण ये कीड़े-मकोड़ों से पोषण प्राप्त करते हैं, विशेष रूप से प्रवास के दौरान, प्रायः हवा में ही इन्हें पकड़ लेते हैं
- उन्हें COP 13 के लोगो में शामिल किया गया
- नगालैंड को विश्व की फाल्कन राजधानी कहा जाता है
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट के अंतर्गत ये पक्षी कम चिंतनीय हैं

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,
- यह वन्य जीवों और पादपों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, वन्य जीवों-पादपों और उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक वैधानिक तंत्र प्रदान करता है
- यह वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन नीतियों पर सरकार को सलाह देने के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थापना करता है
- यह राज्य सरकारों को वन्यजीव संरक्षण समितियाँ बनाने का अधिकार देता है
- अधिनियम के अंतर्गत पाँच संरक्षित क्षेत्र हैं: अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, संरक्षण रिज़र्व, सामुदायिक रिज़र्व और बाघ रिज़र्व
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अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचियाँ
- अनुसूची
- इसमें उन संकटग्रस्त प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें संरक्षण की सख्त आवश्यकता है।
- इस अनुसूची के अंतर्गत कानून का उल्लंघन करने पर किसी व्यक्ति को कठोरतम दंड दिया जा सकता है।
- इस अनुसूची के अंतर्गत आने वाली प्रजातियों का शिकार पूरे भारत में प्रतिबंधित है, सिवाय मानव जीवन के लिये खतरा होने पर या किसी ऐसी बीमारी के मामले में जिसका उपचार संभव न हो।
- अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध जीव-जंतुओं में काला हिरण, हिम तेंदुआ, हिमालयी भालू और एशियाई चीता शामिल हैं
- अनुसूची II
- इस सूची में शामिल जीव-जंतुओं को उच्च सुरक्षा प्रदान की गई है तथा उनके व्यापार पर भी प्रतिबंध है।
- अनुसूची II के अंतर्गत सूचीबद्ध कुछ जंतुओं में असमिया मकाक, हिमालयी काला भालू और इंडियन कोबरा शामिल हैं
- अनुसूची III और IV
- जो प्रजातियाँ संकटग्रस्त नहीं हैं उन्हें अनुसूची III और IV के अंतर्गत शामिल किया गया है
- इसमें संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं जिनका शिकार प्रतिबंधित है, लेकिन किसी भी उल्लंघन के लिये जुर्माना पहली दो अनुसूचियों की तुलना में कम है।
- अनुसूची III के अंतर्गत संरक्षित जीव-जंतुओं में चीतल (स्पॉटेड डियर), भारल (नीली भेड़), लकड़बग्घा और सांभर (हिरण) शामिल हैं
- अनुसूची IV के अंतर्गत संरक्षित जीव-जंतुओं में फ्लेमिंगो, खरगोश, फाल्कन, किंगफिशर, मैगपाई और हॉर्सशू केकड़े शामिल हैं
- अनुसूची V
- इस अनुसूची में वे जीव-जंतुओं शामिल हैं जिन्हें वर्मिन (छोटे वन्य जीव जो रोग संक्रामक होते हैं और वनस्पति व भोजन को क्षति पहुँचाते हैं) माना जाता है। इन जीव-जंतुओं का शिकार किया जा सकता है।
- इसमें वन्य जीवों की केवल चार प्रजातियाँ शामिल हैं: सामान्य कौवे, फल चमगादड़ (Fruit Bats), चूहे और मूषक
- अनुसूची VI
- यह किसी निर्दिष्ट पादप प्रजाति की कृषि के विनियमन का प्रावधान करता है तथा उसके अधिकार, बिक्री और परिवहन पर प्रतिबंध लगाता है।
- निर्दिष्ट पादप प्रजाति/वनस्पति की कृषि और व्यापार दोनों ही सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किया जा सकेगा।
- अनुसूची VI के अंतर्गत संरक्षित पादप प्रजाति में बेडडोम्स साइकैड (भारत की मूल पादप प्रजाति), ब्लू वांडा (ब्लू आर्किड), रेड वांडा (रेड आर्किड), कुथ (सोसुरिया लप्पा), स्लिपर आर्किड (पैपिओपेडिलम spp.) और पिचर प्लांट (नेपेन्थेस खासियाना) शामिल हैं।
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