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 24-Apr-2025

अनुच्छेद 142

भारतीय राजनीति

चर्चा में क्यों?  

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए 250 छात्रों को उनके संस्थान के परिसर के स्थानांतरण के कारण शिक्षा में आने वाली बाधाओं से बचाने का आदेश दिया।  

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?  

अनुच्छेद 142 भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कोई भी आदेश या डिक्री जारी करने का अधिकार देता है। यह एक विवेकाधीन और अनन्य शक्ति है जो केवल सर्वोच्च न्यायालय में निहित है।  

उद्देश्य और महत्त्व  

  • पूर्ण न्याय की अवधारणा न्यायालय को प्रक्रियागत तकनीकीताओं से परे जाने, विधिक कमियों को दूर करने और यहाँ तक कि संवैधानिक मूल्यों, मूल अधिकारों और लोक कल्याण को बनाए रखने के लिये आवश्यकता पड़ने पर मौजूदा कानूनों की व्याख्या करने या उन्हें निरस्त करने की अनुमति देती है।  
  • डॉ. बी.आर. अंबेडकर और संविधान निर्माताओं ने सोच-समझकर इस असाधारण शक्ति को केवल सर्वोच्च न्यायालय के लिये आरक्षित रखा, ताकि उसे न्याय के अंतिम संरक्षक के रूप में मान्यता दी जा सके।  

आलोचना  

आलोचकों का तर्क है कि अनुच्छेद 142 न्यायपालिका को पर्याप्त जवाबदेही के बिना व्यापक शक्तियाँ देता है, जिससे न्यायिक अतिक्रमण हो सकता है। हालाँकि, ये शक्तियाँ असाधारण मामलों के लिये हैं जहाँ मौजूदा कानून अपर्याप्त हैं।  

न्यायिक सक्रियता 

न्यायिक हस्तक्षेप

इसमें न्यायपालिका का सक्रिय भूमिका निभाते हुए संवैधानिक मूल्यों और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना शामिल है। 

यह तब होता है जब न्यायपालिका अपनी अधिकार सीमा से बाहर जाकर विधायिका या कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करती है। 

यह सुनिश्चित करता है कि कानून संविधान के अनुरूप हों। 

यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जिससे लोकतंत्र को नुकसान होता है। 

यह सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देता है और संवेदनशील समूहों का समर्थन करता है। 

इसे लोकतांत्रिक प्रणाली में हानिकारक और अवैध माना जाता है।