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 10-Sep-2025

पंजाब में बाढ़ संकट

विविध

चर्चा में क्यों?

पंजाब पिछले 40 वर्षों में यहाँ आईं सबसे गंभीर बाढ़ों में से एक का सामना कर रहा है। वर्तमान बाढ़ संकट ने राज्य के सभी 23 ज़िलों को प्रभावित किया है।

बाढ़ के कारण

प्राकृतिक कारण

मानवजनित कारण
  • प्रबल मानसूनी वर्षा और जलवायु परिवर्तन: जलग्रहण क्षेत्रों में अनियमित और तीव्र वर्षा तथा जलवायु परिवर्तन (IPCC AR6) नदियों के उफान और बाढ़ का कारण बनते हैं।
  • प्रमुख बाढ़ें 1955, 1988, 1993, 2019 और 2023 में।
  • भौगोलिक संवेदनशीलता: पंजाब में तीन स्थायी नदियाँ हैं (रावी, ब्यास, सतलज) और कुछ मौसमी नदियाँ (घग्गर और अन्य छोटी सहायक नदियाँ)।
  • ये नदियाँ राज्य की भूमि को उपजाऊ बनाती हैं, जिससे भारत के कुल गेहूँ उत्पादन का लगभग 20% और चावल का 12% उत्पादन केवल 1.5% भूमि से होता है। इस कारण इसे “भारत का अन्न भंडार” कहा जाता है।
  • बांध प्रबंधन के मुद्दे: भारी वर्षा के दौरान भाखड़ा, पोंग और थीन बांधों से असमन्वित रूप से जल को छोड़ना।
  • शासन में खामियाँ: भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB), पंजाब के सिंचाई अधिकरणों और आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी।
  • अनियंत्रित विकास: बाढ़ क्षेत्रों में अवैध निर्माण, वनों की कटाई और अनियंत्रित विकास प्राकृतिक बाढ़ अवरोधों को कम करते हैं।

चुनौतियाँ

आगे की राह / समाधान

  • केंद्र द्वारा नियंत्रित बांध सिंचाई और विद्युत् उत्पादन को प्राथमिकता देते हैं, जिससे बाढ़ प्रबंधन पर कम ध्यान दिया जाता है।
  • बांधों से पानी छोड़ने पर केंद्र-राज्य समन्वय में सुधार की आवश्यकता है; सी-फ्लड सिस्टम को अपनाया जाए और इसे भुवन प्लेटफॉर्म के माध्यम से मौसम और जलविज्ञान डेटा के साथ एकीकृत किया जाए।
  • वर्ष 2022 में BBMB में पदों की भर्ती के संदर्भ में किये गए संशोधन द्वारा शीर्ष पद पर गैर-पंजाब/हरियाणा अधिकारियों की नियुक्ति) ने राज्य-केंद्र संबंध तनावपूर्ण बनाए।
  • समन्वय और निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता आवश्यक है।
  • सरकारें अक्सर बाढ़ के बाद प्रतिक्रिया देती हैं, जबकि अवैध रेत खनन और अव्यवस्थित  जलनिकासी जलभराव को और बदतर करते हैं।
  • धुस्सी बांधों (मिट्टी के तटबंधों) में निवेश की आवश्यकता है, अवैध खनन को रोका जाए (सैटेलाइट निगरानी) और जलनिकासी तंत्र का आधुनिकीकरण किया जाए।
  • अनियमित मानसून, अत्यधिक वर्षा और स्थानीय स्तर पर सीमित तैयारी बाढ़ प्रबंधन और लचीलेपन में चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
  • बाढ़-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा दिया जाए, कृषि क्षेत्र में विविधता के साथ-साथ बाढ़ पूर्वानुमान तंत्र का विस्तार किया जाए, डिजिटल अलर्ट और क्षमता निर्माण (कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से) किया जाए।