10-Jun-2025

जल संरक्षण

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों? 

जयपुर के कूकस गाँव ने 10 करोड़ लीटर मानसूनी जल को संरक्षित करने के लिये जलवायु-अनुकूल कृषि तालाब मॉडल अपनाया है, जिससे किसानों के लिये जल की उपलब्धता में वृद्धि हुई है।

जयपुर के कुकस गाँव में जलवायु-अनुकूल कृषि तालाब मॉडल 

राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पानी की कमी कृषि के लिये बड़ी चुनौती है। इस समस्या से निपटने के लिये जयपुर के पास कुकस गाँव ने जलवायु-अनुकूल कृषि तालाब मॉडल लागू किया है, जिससे सालाना लगभग 10 करोड़ लीटर मानसूनी पानी का संरक्षण होता है। 

भारत में जल संरक्षण और वाटरशेड प्रबंधन 

जल संरक्षण जल संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करता है, जबकि वाटरशेड प्रबंधन वाटरशेड के भीतर भूमि और जल के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है। पानी की कमी तथा कृषि पर निर्भरता के कारण भारत में दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। 

जल संरक्षण और वाटरशेड प्रबंधन में तकनीकें 

  • वर्षा जल संचयन : भूजल पुनर्भरण के लिये छतों पर जल संचयन, चेक डैम और तालाबों जैसे उपायों के माध्यम से वर्षा जल को एकत्र करना और पुनर्भरण करना। 
  • चेक डैम और नाला चैनलाइज़ेशन : नदियों पर छोटे-छोटे बाँध बनाकर जल प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है और भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा दिया जाता है। नाला चैनलाइज़ेशन से वर्षाजल की निकासी को नियंत्रित कर बाढ़ की संभावना को कम किया जाता है।
  • वाटरशेड उपचार : मृदा अपरदन को रोकने, जल प्रतिधारण में सुधार करने तथा भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने के लिये भूमि, वनस्पति और जल का प्रबंधन करना। 
  • समोच्च जुताई : जल प्रवाह को धीमा करने, कटाव को कम करने और जल अवशोषण में सुधार करने के लिये भूमि की समोच्च रेखाओं के साथ जुताई करना। 
  • जल उपयोग दक्षता : जल की बर्बादी को कम करने और फसल की उपज में सुधार करने के लिये ड्रिप सिंचाई तथा स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों का उपयोग करना। 
  • जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम : राष्ट्रीय जलग्रहण प्रबंधन परियोजना तथा IWMP जैसी सरकारी पहलें जलग्रहण क्षेत्रों के पुनर्स्थापन, जल गुणवत्ता में सुधार और जल के समान वितरण को सुनिश्चित करने हेतु क्रियान्वित करना।
  • वनरोपण और पुनर्वनरोपण: मृदा अपरदन को रोकने और जल चक्र को बनाए रखने के लिये जलग्रहण क्षेत्रों में वृक्ष लगाना। 
  • चेक डैम और सैंड बाँध: शुष्क क्षेत्रों में बनाई जाने वाली संरचनाएँ, जो जल संचयन, भूजल पुनर्भरण, बाढ़ की रोकथाम और सूखे की स्थिति को कम करने में सहायक होती हैं।
  • सिंचाई प्रणालियों का प्रबंधन: अच्छी तरह से रख-रखाव वाली नहरों और सिंचाई नेटवर्क के माध्यम से जल का कुशल वितरण तथा अपव्यय की रोकथाम।

भारत में उल्लेखनीय संरक्षण पहल 

  • नीरू-मीरू (आंध्र प्रदेश): वर्ष 2000 में प्रारंभ की गई इस योजना का उद्देश्य जलग्रहण प्रबंधन, तालाबों की गाद निकासी, चेक डैम निर्माण तथा वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित कर भूजल पुनर्भरण को बढ़ाना है।
  • हरियाली (केंद्र सरकार की पहल): यह एक ग्रामीण जल संरक्षण कार्यक्रम है, जिसके अंतर्गत ग्राम पंचायत स्तर पर तालाब और चेक डैम का निर्माण कर स्थायी जल प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाता है।
  • जल जीवन हरियाली (बिहार) : वर्ष 2019 में शुरू किया गया यह अभियान जल संरक्षण को वनीकरण के साथ जोड़ता है, वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करता है और जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करता है। 
  • जोहड़ (राजस्थान) : पारंपरिक मिट्टी के चेक बाँध, जो वर्षा जल को रोकते हैं, मृदा अपरदन को रोकते हैं और शुष्क क्षेत्रों में भूजल को पुनर्भरण करते हैं। 
  • अरवरी पानी संसद (राजस्थान) : अलवर ज़िले में शुरू की गई यह एक सामुदायिक पहल है, जिसमें ग्रामीणों द्वारा जल संसाधनों का प्रबंधन किया जाता है, जिससे अरवरी नदी का पुनर्जीवन संभव हुआ। 
  • अन्य राज्य 
    • तमिलनाडु: शहरी भवनों में वर्षा जल संचयन अनिवार्य। 
    •  महाराष्ट्र: मृदा एवं जल संरक्षण के लिये वाटरशेड विकास।