02-May-2025
अनुच्छेद 21
भारतीय राजनीति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अमर जैन बनाम भारत संघ और अन्य में अपने निर्णय में ई-गवर्नेंस और कल्याण वितरण प्रणालियों तक समावेशी और सार्थक डिजिटल पहुँच को अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मूल अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की है।
निर्णय की मुख्य बातें:
- KYC मानदंडों में संशोधन: सर्वोच्च न्यायालय ने डिजिटल 'अपने ग्राहक को जानो' (KYC) मानदंडों में संशोधन का निर्देश दिया है, ताकि दिव्यांग जनों, जिनमें चेहरे की विकृति (जैसे एसिड हमलों के पीड़ित) या दृष्टिबाधित लोग भी शामिल हैं, को बैंकिंग और ई-गवर्नेंस सेवाओं तक पहुँच प्रदान की जा सके।
- मौलिक समानता का सिद्धांत: निर्णय में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि डिजिटल परिवर्तन समावेशी और न्यायसंगत होना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि समाज के सभी वर्ग डिजिटल सेवाओं से समान रूप से लाभान्वित हों।
- अनुच्छेद 21 का भाग: डिजिटल पहुँच को अब जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार का मुख्य भाग माना जाता है, जिससे सभी नागरिकों, विशेष रूप से संवेदनशील और हाशिये पर रह रहे समूहों को डिजिटल बुनियादी ढाँचा प्रदान करना एक संवैधानिक दायित्व बन जाता है।
- राज्य का दायित्व: न्यायालय के अनुसार, राज्य को डिजिटल पहुँच में निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करने के लिये अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव के विरुद्ध अधिकार) और अनुच्छेद 38 (सामाजिक न्याय) के तहत डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये।
समावेशी डिजिटल पहुँच का महत्त्व:
- आवश्यक सरकारी योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- ग्रामीण-शहरी अंतर को कम करता है।
- ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफार्मों, वित्तीय सेवाओं और अन्य डिजिटल उपकरणों तक पहुँच को सुगम बनाता है, जो हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये विकास प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग लेने के लिये महत्त्वपूर्ण है।