18-Oct-2024
सत्य शोधक समाज
इतिहास
सत्य शोधक समाज
- स्थापना : सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए 24 सितंबर, 1873 को ज्योतिराव फुले द्वारा स्थापित।
- उद्देश्य
- शूद्रों और अतिशूद्रों को पुरोहितों, साहूकारों आदि के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बंधन से मुक्त कराना।
- इसका उद्देश्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रथाओं में पुजारियों की आवश्यकता को समाप्त करना था।
- इसका उद्देश्य शिक्षित शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए प्रशासन में रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना था।
- इसने उत्पीड़ित वर्गों में शिक्षा को प्रोत्साहित किया ताकि वे उन धार्मिक ग्रंथों को पढ़ और समझ सकें जो उनका शोषण करते थे।
- इसने समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये निम्न जातियों में एकजुटता की भावना को बढ़ावा दिया।
- विकास: एक दशक के भीतर महाराष्ट्र के शहरी, अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से विस्तार हुआ, सभी के लिये खुली सदस्यता के साथ।
महात्मा ज्योतिराव फुले
- जन्म: पुणे में एक माली परिवार में जन्मे, उन्होंने पेशवा शासन के दौरान जाति-आधारित उत्पीड़न देखा।
- उन्होंने सीधे तौर पर हिंदू धर्म का सामना किया, जिसने जाति व्यवस्था को धार्मिक और आध्यात्मिक आधार प्रदान किया।
- शैक्षिक पहल
- अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की, जिनमें लड़कियों के लिये पहला स्कूल भी शामिल था।
- उन्होंने शिक्षा के ट्रिकल-डाउन सिद्धांत की आलोचना की और तर्क दिया कि शिक्षा तक पहुँच में ऐतिहासिक असमानताओं के कारण यह भारत में काम नहीं करेगा।
- सभी के लिये स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देने वाले उनके आंदोलनों के लिये उन्हें आधुनिक भारत की परिकल्पना के प्रथम निर्माता के रूप में जाना जाता है।
- डॉ. बी.आर. अंबेडकर उन्हें बुद्ध और कबीर के समान गुरु मानते थे।
- साहित्यिक योगदान: लोकप्रिय मिथकों की जाँच करने और अंधविश्वास, पुरोहितवाद और जाति भेदभाव के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिये गुलामगिरी (1873) जैसी किताबें लिखीं।
- अन्य महत्त्वपूर्ण लेखन
- थर्ड जेम (नाटक) - 1855
- बलाड ऑफ छत्रपति शिवाजी - 1869
- डिसीट ऑफ ब्राहमिंस - 1869
- स्लेवरी - 1873
- द फार्मर्स व्हिप - 1883
- द कंडीशन ऑफ अनटचएल्बस - 1885
- पब्लिक बुक ऑफ ट्रू रिलीजन - 1889
- सूटेबल ह्यमनस एंड वर्शिप मेथड्स फॉर द सत्य शोधक समाज - 1887
- विविध काव्य रचनाएँ