04-Oct-2024
यूनाइटेड किंगडम (UK)-मॉरीशस संधि: चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता को संबोधित करना
वैश्विक मामले
चर्चा में क्यों?
3 अक्तूबर 2024 को , UK और मॉरीशस ने चागोस द्वीप समूह की संप्रभुता मॉरीशस को हस्तांतरित करने के लिये एक "ऐतिहासिक" समझौता किया है, जबकि डिएगो गार्सिया पर UK-US सैन्य अड्डे को कम से कम 99 और वर्षों तक चालू रखा जाएगा। वर्ष 2022 से बातचीत के बाद यह समझौता एक लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय विवाद को हल करता है और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण अड्डे के भविष्य को सुनिश्चित करता है।
समझौते में भारत की भूमिका
- भारत ने चागोस द्वीप समूह पर कानूनी विवाद में मॉरीशस का समर्थन किया है तथा संप्रभुता पर ज़ोर दिया है।
- भारत का समर्थन संप्रभुता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता तथा मॉरीशस के साथ उसके विशेष राष्ट्रमंडल संबंध को दर्शाता है।
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पोर्ट लुईस की यात्रा के दौरान भारत के समर्थन की पुष्टि की।
- मॉरीशस-UK समझौते में भारत ने महत्त्वपूर्ण लेकिन संक्षिप्त भूमिका निभाई।
- भारत ने दोनों पक्षों से पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणामों के लिये बातचीत करने का आग्रह किया।
- इस समझौते को सभी पक्षों की जीत के रूप में देखा जा रहा है तथा यह हिंद महासागर क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा को मज़बूत करेगा।
चागोस द्वीप विवाद के बारे में
- ऐतिहासिक दावा: हिंद महासागर में स्थित चागोस द्वीपसमूह पर वर्ष 1814 में मॉरीशस के साथ ब्रिटेन ने दावा किया था।
- अमेरिका को पट्टा : वर्ष 1966 में ब्रिटेन ने द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया को सैन्य अड्डे के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका को पट्टे पर दे दिया।
- चागोसियन संघर्ष : चागोसियन, मुख्य रूप से 18वीं शताब्दी में द्वीपों पर लाए गए अफ्रीकी दासों के वंशज हैं, जो वापस लौटने के अधिकार के लिये लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
- मॉरीशस का दावा : वर्ष 1968 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, मॉरीशस ने लगातार चागोस द्वीप समूह पर अपना दावा जताया है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का निर्णय: वर्ष 2019 में, ICJ ने फैसला सुनाया कि ब्रिटेन को चागोस द्वीप समूह पर शासन करने का कोई अधिकार नहीं है और उसने द्वीपसमूह से ब्रिटेन को हटने को कहा।
चागोस द्वीप समूह के बारे में
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