09-Jun-2025
भगवान बिरसा मुंडा
विविध
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा को उनके शहीद दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
- बिरसा मुंडा के बारे में
- जन्म और पृष्ठभूमि : 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी में छोटानागपुर पठार के मुंडा जनजाति में जन्मे।
- औपनिवेशिक शोषण : अंग्रेज़ो ने पारंपरिक खूँटकट्टी प्रणाली (सामुदायिक भूमि स्वामित्व) को जमींदारी प्रणाली से बदल दिया, जिसके परिणामस्वरूप जनजातीय समुदायों को भूमि से बेदखली, जबरन मज़दूरी तथा अत्यधिक किराया जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- शिक्षा और धार्मिक आंदोलन
- प्रारंभिक पढ़ाई सलगा में तथा आगे की पढ़ाई जर्मन मिशन स्कूल में की।
- उन्होंने यह समझने के बाद कि ईसाई धर्मांतरण ब्रिटिश नीति से जुड़ा है, ईसाई धर्म छोड़ दिया।
- उन्होंने 'बिरसाइत' नामक नया पंथ शुरू किया, जिसमें जनजातीय परंपराओं का प्रचार तथा अंधविश्वासों का विरोध किया गया।
- उनके अनुयायियों को ‘बिरसाइत’ कहा गया।
- मुंडा विद्रोह (उलगुलान), 1899–1900
- उन्होंने ब्रिटिश भूमि नीतियों और वन कानूनों के खिलाफ एक प्रमुख आदिवासी विद्रोह का नेतृत्व किया।
- उन्होंने 'मुंडा राज' (स्व-शासन) के विचार को बढ़ावा दिया और ब्रिटिश सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाई।
- उन्होंने नारा दिया — “अबुआ राज सेतेर जाना, महारानी राज तुंदु जाना” (अर्थात – “अपना राज स्थापित करें, रानी का राज समाप्त करें”)।
- जनजातीय अधिकारों में योगदान
- उन्होंने भूमि अधिग्रहण और औपनिवेशिक शोषण का विरोध किया।
- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 को प्रभावित किया, जिसने आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा की।
- धार्मिक और सामाजिक सुधारक
- जनजातीय आस्था और पहचान की ओर लौटने को प्रोत्साहित किया गया।
- उन्हे 'धरती आबा' (पृथ्वी के पिता) के रूप में जाना जाता है।
- मृत्यु:
- उन्हे मार्च 1900 में गिरफ्तार कर लिया गया। .
- 9 जून 1900 को राँची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
- विरासत और मान्यता :
- 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
- झारखंड की स्थापना वर्ष 2000 में उनकी जयंती पर हुई थी।
- राँची में स्थित संग्रहालय और पीएम-जनमन योजना उनकी विरासत से प्रेरित आदिवासी न्याय तथा सशक्ततीकरण के लिये निरंतर प्रयासों को दर्शाती है।