01-Sep-2025

पार्किंसन रोग (PD) हेतु बायोसेंसर

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

इंस्टिट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (INST), मोहाली के वैज्ञानिकों ने नैनो-प्रौद्योगिकी आधारित बायोसेंसर विकसित किया है, जो पार्किंसन रोग का शीघ्र निदान करने में सहायक होगा।

  • यह बायोसेंसर अमीनो अम्लों से कोटेड स्वर्ण नैनोक्लस्टर्स (AuNCs) का उपयोग करता है। मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षति पहुँचाने वाले विषैले α-सिन्यूक्लिन समूहों (एमिलॉयड्स) का पता लगाता है।
  • इसकी प्रारंभिक लागत कम है एवं यह लेबल-फ्री (label-free) परीक्षण की सुविधा प्रदान करता है। पॉइंट-ऑफ-केयर (Point-of-Care) निदान हेतु उपयुक्त है तथा अल्ज़ाइमर और अन्य प्रोटीन विकारों के निदान में भी संभावनाएँ रखता है।

पार्किंसन रोग

  • परिचय: एक गतिशील न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है जिसमें गति विकार लक्षण: कंपकंपी (tremors), अकड़न (rigidity), अस्थिरता एवं गति विकार के अतिरिक्त लक्षण: संज्ञानात्मक (cognitive) और मनोवैज्ञानिक (mood) समस्याएँ शामिल होती हैं।
  • कारण: मिडब्रेन के सब्सटैनशिया नाइग्रा क्षेत्र में डोपामाइन न्यूरॉनों की क्षति मुख्यतः आनुवंशिक उत्परिवर्तन (genetic mutations) और पर्यावरणीय कारकों (जैसे कीटनाशक, प्रदूषण) के कारण।
  • व्यापकता: वर्ष 2019 में ~8.5 मिलियन वैश्विक मामले, भारत: 0.58 मिलियन (~10%)।
    • 2050 तक अनुमान: भारत: 2.8 मिलियन (168% वृद्धि), वैश्विक: 25.2 मिलियन।
  • उपचार: पूर्ण उपचार संभव नहीं, प्रबंधन: लेवोडोपा/कार्बिडोपा दवाओं के माध्यम से साथ ही शल्य-चिकित्सा, पुनर्वास (rehab) से लक्षणों में कमी की जा सकती है
  • संबंधित पहल: नेशनल पार्किंसन नेटवर्क (2024), MDSI द्वारा प्रारंभ।