26-Sep-2024
सांप्रदायिक पंचाट और पूना समझौता 1932
इतिहास
सांप्रदायिक पंचाट के बारे में
- इसे 16 अगस्त 1932 को रैमसे मैकडोनाल्ड के नेतृत्व में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया था ।
- इसका उद्देश्य भारत में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समुदायों, जिनमें दलित वर्ग भी शामिल था, के लिए अलग-अलग निर्वाचक मंडल स्थापित करना था।
- इसका उद्देश्य हाशिये पर पड़े समूहों को सशक्त बनाना था।
- इससे समुदायों के बीच विभाजन बढ़ने तथा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एकता को नुकसान पहुँचने का खतरा उत्पन्न हो गया।
- पूना समझौता (1932) इसी संदर्भ में हुआ।
- विशेषताएँ
- पृथक निर्वाचन क्षेत्र: मराठों, दलित वर्गों, सिखों, महिलाओं, भारतीय ईसाइयों और एंग्लो-इंडियनों के लिये पृथक निर्वाचिका मंडल शुरू किये गए, जिसमें मराठों को बॉम्बे में सात सीटें और दलित वर्गों को 71 आरक्षित सीटें दी गईं।
- इसने दलित वर्गों को आम चुनावों में जातिगत हिंदुओं के साथ मतदान करने की अनुमति दी।
- इसने सांप्रदायिक आधार पर प्रांतीय विधानसभाओं की सीटें आवंटित कीं।
- इसने उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत को छोड़कर सभी प्रांतों में महिलाओं के लिये 3% सीटें आरक्षित कर दीं।
- मज़दूरों, ज़मींदारों, व्यापारियों और उद्योगपतियों के लिये भी सीटें आवंटित की गईं।
पूना समझौता, 1932 के बारे में
- इस समझौते पर 24 सितंबर 2024 को हस्ताक्षर किये गए ।
- यह समझौता एक ऐसे समाधान का प्रतिनिधित्व करता है जो दो अलग-अलग विचारधाराओं को जोड़ता है: अंबेडकर का राजनीतिक दृष्टिकोण और गांधी का सामाजिक दृष्टिकोण।
- अंबेडकर और गांधी के बीच व्यापक विचार-विमर्श के बाद, वे संयुक्त निर्वाचक मंडल पर केंद्रित फार्मूले पर सहमत हुए।
- इसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक पंचाट में संशोधन हुआ, जिसे सरकार ने बाद में स्वीकार कर लिया।
- विशेषताएँ
- महात्मा गांधी के साथ हुए एक समझौते में, अंबेडकर ने संयुक्त निर्वाचिका के माध्यम से दलित वर्गों के उम्मीदवारों के चुनाव पर सहमति व्यक्त की।
- इसने संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित सीटों की व्यवस्था स्थापित की।
- इसमें दलित वर्गों के लिये 148 सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया, जबकि सांप्रदायिक पंचाट द्वारा 71 सीटें आवंटित की गई थीं।
- भविष्य में आरक्षण जारी रखने का निर्णय आपसी सहमति से किया जाएगा।
नोट:
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