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 13-May-2025

उत्तर भारत में पराली दहन

पर्यावरण और पारिस्थितिकी

चर्चा में क्यों? 

भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अमृतसर द्वारा वर्ष 2025 में किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि पंजाब में पराली दहन का मुख्य कारण संरचनात्मक बाज़ार विकृतियाँ और नीतिगत प्रोत्साहन, विशेष रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) है। 

पराली दहन क्या है?
पराली दहन फसल अवशेष, आम तौर पर धान की पराली को जलाने की प्रथा हैताकि आगामी फसल के लिये खेतों को शीघ्र-अतिशीघ्र साफ किया जा सके। यह व्यापक समस्या विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अक्तूबर-नवंबर के दौरान प्रचलित है। 

भारत में पराली दहन के जारी रहने के प्रमुख कारण: 

  • एकल फसल प्रणाली और MSP व्यवस्था: MSP केवल गेहूँ और धान का समर्थन करता है, जिससे फसल विविधिकरण हतोत्साहित होता है और पराली जलाने की समस्या बढ़ती है।
  • बाज़ार की समस्याएँ: बिचौलियों द्वारा फसल के कम दाम और MSP दरों से लागत की पूर्ति न होने के कारण किसान कर्ज में डूबते हैं और पराली दहन जैसे हानिकारक उपाय अपनाते हैं।
  • विकल्पों की कमी: फसल अवशेष प्रबंधन के लिये कोई सस्ते और टिकाऊ समाधान नहीं हैं, जिससे पराली दहन ही किफायती विकल्प बन जाता है।
  • जलवायु दबाव: बरसात में देरी और तापमान में वृद्धि के कारण खेतों को शीघ्र खाली करना पड़ता है, जिससे पराली जलाने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
  • अप्रभावी बायो-डीकंपोज़र: लॉजिस्टिक देरी और असंगत परिणामों के कारण बायो-डीकंपोज़र का उपयोग सीमित है।

पराली दहन का प्रभाव 

  • पराली दहन से वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, विशेष रूप से उत्तरी भारत में, जिससे PM2.5 का स्तर बढ़ जाता है और दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब हो जाती है। 
  • IIT और TERI द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि फसल के मौसम में वायु प्रदूषण में पराली दहन की हिस्सेदारी 22-35% है। 

पराली दहन से निपटने के लिये तकनीकी उपाय: 

  • हैप्पी सीडर: ट्रैक्टर पर लगाया जाने वाला एक उपकरण जो धान के खेतों में सीधे गेहूँ बोता है, जबकि पुआल (straw) को काटने और उठाने की प्रक्रिया भी चलती रहती है, जिससे उसे जलाने की आवश्यकता नहीं होती। 
  • पूसा डीकंपोज़र: एक सूक्ष्मजीवी फार्मूलेशन जो धान की पराली को विघटित कर खाद बनाता है, जिससे मृदा की उर्वरता में वृद्धि होती है। 
  • फसल अवशेषों का पैलेटीकरण: ऊर्जा उत्पादन के लिये फसल अवशेषों को बायोमास पैलेट में परिवर्तित किया जाता है। 
  • बायोचार उत्पादन: फसल अवशेषों को बायोचार में परिवर्तित करता है, जिससे मृदा की उर्वरता में सुधार होता है और कार्बन अवशोषण में योगदान होता है।